tag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post8274162134307656896..comments2023-11-03T18:39:41.833+05:30Comments on मतान्तर: हिंदी सिर्फ साहित्य नहीं हैBalendu Sharma Dadhichhttp://www.blogger.com/profile/16546616205596987460noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-40291489555107914952009-08-08T14:34:38.542+05:302009-08-08T14:34:38.542+05:30मित्रो कविताजी की क्षेत्र संबंधी टिप्पणी को हटा दि...मित्रो कविताजी की क्षेत्र संबंधी टिप्पणी को हटा दिया गया है (कविताजी कृपया क्षमा करें)। मूल मुद्दे पर ही बहस आगे बढ़ती रहे तो अच्छा है।<br /><br />कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना जरूरी है। हिंदी अकादमी साहित्य पर केंद्रित संस्था नहीं है। इसके लिए दिल्ली में साहित्य कला अकादमी अलग से है। इसलिए यह दलील अप्रासंगिक है कि हिंदी अकादमी में कोई खास किस्म का साहित्य लिखने वाले व्यक्ति ही आएँ। वे हिंदी से संबद्ध किसी भी क्षेत्र (पत्रकारिता, भाषा-विज्ञान, हिंदी-तकनीक, राजभाषा, अनुवाद, शिक्षण आदि-आदि) से हो सकते हैं, जिनमें से साहित्य महज एक है। <br /><br />भाई शशि सिंह ने सही लिखा है कि हास्य भी नौ रसों में से एक है और अभिनव ने उसके महत्व की सही व्याख्या भी की है। इस बात की क्या गारंटी है कि कोई तथाकथित गंभीर लेखन करने वाला व्यक्ति अकादमी को बेहतर ढंग से चलाएगा? क्या साहित्य की अलग-अलग वैरायटी के लोग अलग-अलग प्रशासकीय क्षमता रखते हैं?<br /><br />भाई संजय ग्रोवर की यह बात समझ नहीं आई कि जिन लोगों ने ज्यादा संघर्ष किया है और सामाजिक मुद्दे उठाए हैं वे अधिक अच्छे साहित्यकार और प्रशासक हैं? तो क्या प्रकृति, प्रेम, मानव संबंधों, दर्शन आदि को केंद्र बनाकर लिखने वाले साहित्यकार अच्छे नहीं हैं? और जिन्हें वे अच्छे साहित्यकार बता रहे हैं वे किस आधार पर किसी अकादमी के प्रमुख के लिए औरों से बेहतर पात्र हैं? फिर यह भी कैसे कहा जा सकता है कि हास्य कविता के जरिए गंभीर सामाजिक मुद्दे नहीं उठाए जा सकते?<br /><br />कंप्यूटर को लेकर साहित्यकारों के बीच मुहिम चलाना कोई खिल्ली उड़ाने योग्य मुद्दा नहीं है। अधिकांश वरिष्ठ साहित्यकार उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं। उनके देखते ही देखते दुनिया में कामकाज, संचार, संपर्क, प्रकाशन, शोध, प्रचार आदि के तौर-तरीके बदल गए हैं और वे इस अज़ाब में खुद को एक अजनबी सा महसूस कर रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि बड़े-बड़े हिंदी साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व इंटरनेट पर एकाध दर्जन पन्ने की सामग्री भी नहीं मिलती जबकि एक सामान्य से ब्लॉगर के नाम से हजारों सर्च रिजल्ट मिल जाते हैं? इसका अर्थ यह तो नहीं कि आप-हम जैसे ब्लॉगर विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर या मृदुला गर्ग से अधिक योग्य हैं? लेकिन वरिष्ठ साहित्यकार नए जमाने के तौरतरीके अपनाने में पिछड़ रहे हैं। ऐसे में कोई उन्हें जेनुइनली तकनीक से परिचित कराने की कोशिश करता है तो यह प्रशंसनीय क्यों नहीं है?Balendu Sharma Dadhichhttps://www.blogger.com/profile/16546616205596987460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-43735565589937955982009-08-08T06:41:45.638+05:302009-08-08T06:41:45.638+05:30अनेक कमेंट्स में ये बात पूछी गयी है की अशोक जी का ...अनेक कमेंट्स में ये बात पूछी गयी है की अशोक जी का साहित्य क्या है. हम उसकी तुलना प्रेमचंद तथा अन्य बड़े लेखकों से कैसे कर सकते हैं. मेरे ख्याल से इस बात में कोई दम नहीं है. आप अशोकजी की पुस्तक (कोई भी) उठा कर देखिये, मुझे विश्वास है कि आप पूरी पुस्तक खत्म किये बिना नहीं रुकेंगे. समय के साथ भाषा और साहित्य कि दिशा में भी परिवर्तन होता है. <br />और जो ज़िम्मेदारी अशोक जी को दी गयी है उसके लिए उनका स्वयं लिखने से अधिक लेखन के प्रति जागरूक होना अधिक आवश्यक है. मुझे नहीं लगता का इससे कोई असहमत होगा कि आगरा विश्वविद्यालय का ये टापर किसी भी मामले में पीछे रह सकता है. जिन लोगों नें अशोक जी के साथ काम किया है वो जानते हैं कि किस प्रकार चौबीस घंटे लगातार निरंतर काम करने कि क्षमता है अशोकजी में. रही बात पुरूस्कार वुरुस्कार आदि कि तो वो तो किसी को भी मिले हंगामा करने वाले कहाँ रुकते हैं. <br /><br />कवि और विदूषक प्रसंग पर कुछ पंक्तियाँ नीचे दे रहा हूँ. इनका वैसे इस चर्चा से कोई सम्बन्ध नहीं है. (ये मात्र मनोरंजन हेतु है.)<br /><br />क्या केवल मन की पीड़ा बोझिल शब्दों में,<br />काग़ज़ पर बिखरा देना कविता होती है,<br />या कोई सन्देश बड़े आदर्शों वाला,<br />ज़ोर ज़ोर से गा देना कविता होती है,<br /><br />वैसे भी भाषाओं पर संकट भारी है,<br />इस पर बोझ व्यंजनाओं का लक्षणाओं का,<br />अभिधा की गलियों से भी होकर जाता है, <br />मिटटी से जुड़ने वाला इक गीत गाँव का,<br /><br />मंचों पर जो होता है वो नया नहीं है,<br />बड़े बड़े ताली की धुन पर नाच रहे हैं,<br />और लिफाफे का सम्बन्ध है अट्टहास से,<br />हम ही क्यों धूमिल की कापी जांच रहे हैं,<br /><br />बात ठीक है इसमें कुछ संदेह नहीं है,<br />कवि में और विदूषक में होता है अंतर,<br />किन्तु वह मसखरा कवि से अधिक प्रणम्य है,<br />जिसकी झोली में है मुस्कानों का मंतर.अभिनवhttps://www.blogger.com/profile/09575494150015396975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-21717317522252342002009-08-08T01:09:15.444+05:302009-08-08T01:09:15.444+05:30कविता वाचक्नवी जी, ये "पूरबिया या बिहार बेल्ट...कविता वाचक्नवी जी, ये <i><b>"पूरबिया या बिहार बेल्ट"</b></i> वाली बात मुझे भी नहीं जमी। ये बात उतनी ही ग़लत है जितनी अशोक जी की नियुक्ति का विरोध। इस तरह के शब्द खेमेबंदी को बढ़ावा देते हैं जो सर्वथा अनुचित माने जाने चाहिये।SHASHI SINGHhttps://www.blogger.com/profile/15088598374110077013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-59465545974213148472009-08-08T00:59:01.458+05:302009-08-08T00:59:01.458+05:30काश हिन्दी अकादमी हास्य अकादमी बन पाता तो शायद हिन...काश हिन्दी अकादमी हास्य अकादमी बन पाता तो शायद हिन्दी का कुछ भला ही कर पाता। अशोक चक्रधर की नियुक्ति का जिस अंदाज में विरोध हो रहा उससे मंच पर उनके काव्य पाठ से कहीं ज्यादा हास्य उत्पन्न हो रहा है। … और विरोध करने वाले आला दर्जे के विदुषक।<br /><br />हास्य रस में लिखे साहित्य को साहित्य नहीं मानने वाले अपनी साहित्यिक समझ (?) का ही परिचय दे रहे हैं। कला और साहित्य के नौ रसों में से एक महत्वपूर्ण हास्य को के अस्तित्व को नकारने वालों हिन्दी तुम्हें कभी माफ नहीं करेगी।<br /><br />… माफी चाहूंगा यदि कोई हिन्दी साहित्य की रचना के लिए यदि नौ रसों से इतर किसी दसवें (चरण रज शिरोधार्य… ) , ग्यारहवें (व्यक्तिगत खुन्नस) या फिर बारहवें (कुंठा) रस के महत्व के आलोक में अपना विरोध जता रहा हो तो मैं अज्ञानी अपनी समझदानी को मच्छरदानी में लपेटकर अपने शब्द वापस भी ले सकता हूं।SHASHI SINGHhttps://www.blogger.com/profile/15088598374110077013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-12954389370841583512009-08-07T19:02:22.266+05:302009-08-07T19:02:22.266+05:30Nihsandeh woh us jagah ke asli 'NAYAK' hai...Nihsandeh woh us jagah ke asli 'NAYAK' hain...unhe hamari shubhkamayen..विजेंद्र एस विजhttps://www.blogger.com/profile/06872410000507685320noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-69173768117984120662009-08-07T11:43:24.374+05:302009-08-07T11:43:24.374+05:30यह पुरबिया और बिहार वाली बात हजम नहीं हुई। हम हिन्...यह पुरबिया और बिहार वाली बात हजम नहीं हुई। हम हिन्दी वाले 'केंकड़ा' मानसिकता से त्रस्त हैं। विवादों की सूची में ब्लॉग बनाम साहित्य विवाद भी जोड़ लीजिए।<br /><br />अशोक चक्रधर विरोध अगर इस कारण हो रहा है कि वह 'साहित्यकार' नहीं हैं, तो विरोध अधिक जमीन नहीं रखता। साहित्यकारों ने ही आज तक पदासीन रह कर ऐसा क्या कर दिया कि हिन्दी ऊँचाई पर जा पहुँची? <br />उन्हें शुभकामनाएँ दीजिए। बहुत बार विदूषक वह काम कर जाता है जो नायक नहीं कर पाता।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-30827180562625205612009-08-07T11:29:37.350+05:302009-08-07T11:29:37.350+05:30कंप्यूटर-दक्षता ही साहित्य का पैमाना होती है तो अक...कंप्यूटर-दक्षता ही साहित्य का पैमाना होती है तो अकादमी को एन. आई. आई. टी. से अनुबंध कर लेना चाहिए। इसी तर्क पर चढ़कर अध्यापकों और प्राध्यापकों ने हिंदी साहित्य का सत्यानाश किया है। आप अशोक चक्रधर के साहित्य की तुलना प्रेमचंद, निर्मल वर्मा, प्रभाष जोशी, उदय प्रकाश, शैलेश मटियानी, राजेंद्र यादव, अशोक वाजपेयी के साहित्य से कर देखिए। साहित्य से जुड़ा इन सबका जीवन-संघर्ष भी तौल लीजिए कि किसने किस मुद्दे पर ठोकरें और गालियां खायीं। अशोक जी ने मंच पर किस तरह के सामाजिक मुद्दे उठाए ? अगर उठाए भी तो मंच पर हंसा भर देने से मुद्दे जीवित रहते हैं कि मर जाते हैं ? क्या मंच की कविता किसी बहस और सुधार को जन्म दे पाती है ? वहां जो श्रोता आते हैं, मनोरंजन के भाव से आते हैं या कहने-सुनने के भाव से, उन्हीं से पूछ देखिए ! प्रस्तावित कवि-सम्मेलन का ढाई करोड़ रुपया(जैसा कि बताया जा रहा है) किस तरह खर्च होगा, इसका भी हिसाब लिया जाना चाहिए ।<br />यह बात अलग है कि अकादमी में रेवड़-बांट पहले भी होती थी और अब भी होगी। चक्रधर जी अपनी तरह से बिलकुल योग्य व्यक्ति हैं और उन्हें विदूषक कहना बहस को निचले और छिछले स्तर पर लाना है। मंचीय कवियों और सम्मेलनों के अब तक की उपलब्धियों के बावजूद अशोक जी कुछ कर दिखाते हैं तो निश्चय ही हमें उनका पहले से ज़्यादा सम्मान करना चाहिए।<br />chunki aapke blog ka naam 'MAT-ANTAR' hai,is liye bhi yahaN apni baat rakhne ki ichchha huyi.Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-46642555231247499272009-08-07T10:45:56.572+05:302009-08-07T10:45:56.572+05:30प्रिय बालेन्दु जी,
सिक्के के एक तरफ देखा जा रहा है...प्रिय बालेन्दु जी,<br />सिक्के के एक तरफ देखा जा रहा है। ज़रा सा बाहर आने की जरूरत है, अशोक जी एक बेहतरीन इंसान है, हिन्दी के लिये खुब काम करते है, हिन्दी को हाईटेक बनाने के उनके प्रयास सभी हाईटेक लोग जानते भी है। अकादमी में उनके विरोध के पीछे के कारण को समझना चाहिये। अशोक जी एक मंचीय कवि के रूप में विख्यात है, ना कि-किसी साहित्यकार के रूप में। आपने कविता में ड्रामें के पुट को डाला है, साहित्य की गम्भीरता के प्रर्दशन को आप नही ला पाये हैं। बालेन्दु जी,<br />मंच के अधिकांशत कवि लालसा की चाह रखते है, और हास्य के मामले में तो एक विदूषक के बराबर की छवि को दिखाते है, ऐसे में अशोक जी को भी इस बात का खमियाजा तो उठाना ही पड़ेगा। वे कवि सम्मेलनों को उस स्तर पर नहीं उठा पाये, जहां हम साहित्य की छटा को महसूस कर सके। कवि सम्मेलन एक मनोरंजन का साधन मात्र रहें। ऐसे में अकादमी में आपके प्रवेश पर विरोध स्वभाविक ही नही बल्कि ये भी बताता है, कि ठीक-ठाक लोग अभी बचे हुए हैं। अशोक जी को मेरी शुभकामनाएं।इरशाद अलीhttps://www.blogger.com/profile/15303810725164499298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-29602863165833347892009-08-07T07:08:16.428+05:302009-08-07T07:08:16.428+05:30चक्रधर जी को अनेकों अनेक शुभकामनाएँचक्रधर जी को अनेकों अनेक शुभकामनाएँराजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-80665381493291601292009-08-07T06:43:56.965+05:302009-08-07T06:43:56.965+05:30जड़ता को आने से अशोक जी के
हो गया है शोक
इसलिए वो ...जड़ता को आने से अशोक जी के<br />हो गया है शोक<br />इसलिए वो इस्तीफों की <br />आंखों से रही है विलोक।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-17235587108196635642009-08-07T04:50:24.103+05:302009-08-07T04:50:24.103+05:30नमस्कार बालेंदुजी,
आपका आलेख पढ़ कर यह धारणा और स...नमस्कार बालेंदुजी, <br /><br />आपका आलेख पढ़ कर यह धारणा और सुदृढ़ हुयी की यदि कोई आदमी बढ़िया काम करे तो उस पर पत्थर फेंकने के लिए हज़ार लोग खड़े हो जाते हैं. वहीं यदि कोई निष्क्रिय रहे तो सब खुश रहते हैं. अब यह बात समाज के हर वर्ग, जाति, संस्था में दिखाई देती है. हमारा साहित्य इससे अछूता कैसे रह सकता है. साहित्य तो समाज का दर्पण है. <br />मुझे नहीं पता की किस किस नें अपने इस्तीफे दिए हैं और कौन कौन सोच रहे हैं. पर मन में ये भाव अवश्य है की जो सोच रहे हैं वे देर न करें जल्दी दे दें ताकि स्तिथि में कुछ सुधार लाया जा सके. <br /><br />अशोकजी को अनेक शुभकामनाएं.<br /><br />अभिनवअभिनवhttps://www.blogger.com/profile/09575494150015396975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-80933242833403861072009-08-06T21:34:39.241+05:302009-08-06T21:34:39.241+05:30हमारे यहाँ कोई भी सिस्टम को न सुधारता है और न ही स...हमारे यहाँ कोई भी सिस्टम को न सुधारता है और न ही सुधारने देता है, पर अगर सुधर जाता है तो कहेंगे कि हमें भी पता था कि इसके इतने फ़ायदे होते हैं, अब देखिये चकल्लस की सफ़लता को ये विरोधी किस मायने में देखते हैं।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-54458488350604437422009-08-06T21:00:13.592+05:302009-08-06T21:00:13.592+05:30यहां ध्यान देने वाली यह बात है कि अशोक जी चाहते है...यहां ध्यान देने वाली यह बात है कि<b> अशोक जी चाहते हैं कि हिंदी वाले इन साहित्यकारों को कम्प्यूटर में दक्ष होना चाहिये अन्यथा वे पिछड सकते हैं</b><br /><br /> - ये होती है मार्के की बात। इसे कहते हैं दूरदृष्टि। अब भी अगर चिल्ल पौं मचाने वाले लोग अशोक जी के विचारों को न समझ पायें या समझकर भी अंजान बनना चाहें तो कोई क्या कर सकता है। <br /><br />मेरी ओर से अशोकजी को शुभकामनाएं।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-42983474311076501962009-08-06T20:06:10.559+05:302009-08-06T20:06:10.559+05:30मुझे लगता है अशोक जी अच्छा काम कर दिखाएंगे और विरो...मुझे लगता है अशोक जी अच्छा काम कर दिखाएंगे और विरोधियों को अच्छा उत्तर यही होगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-49016443414862877402009-08-06T18:04:27.002+05:302009-08-06T18:04:27.002+05:30निश्चित ही अशोक जी की नियुक्ति एक नये युग की शुरुव...निश्चित ही अशोक जी की नियुक्ति एक नये युग की शुरुवात है और उन तथाकथित मठाधिशों को यह बर्दाश्त नहीं कि कोई उनके राजपाठ में नयापन लाकर हलचल मचाये.<br /><br />मेरी समस्त शुभकामनाऐं अशोक जी के साथ. उनके आने से अनेक संभावनाओं के द्वार खुले हैं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-7845732297254152562009-08-06T13:32:47.189+05:302009-08-06T13:32:47.189+05:30कृपया `वार' को `वाले' के रूप में सुधार कर ...कृपया `वार' को `वाले' के रूप में सुधार कर पढ़ें|Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-43229160361263069512009-08-06T13:30:49.070+05:302009-08-06T13:30:49.070+05:30This comment has been removed by a blog administrator.Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-91934235009472532572009-08-06T13:24:46.040+05:302009-08-06T13:24:46.040+05:30हिन्दी की राह में बाधा बनती संस्थाओं को ही भंग कर ...हिन्दी की राह में बाधा बनती संस्थाओं को ही भंग कर दें....<br /><br /><br />अशोकजी जड़ता को तोड़ पाएं,ऐसी कामना है. हमारी शुभकामनाएं.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1902450941432292020.post-68247422838154132962009-08-06T13:15:48.899+05:302009-08-06T13:15:48.899+05:30अभी इनका स्तर और गिरेगा बस इंतजार करें।अभी इनका स्तर और गिरेगा बस इंतजार करें।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.com