Saturday, November 5, 2011

पाकिस्तान से आया ताज़ा हवा का झोंका

पिछले कुछ हफ्तों में भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। संयुक्त राष्ट्र से लेकर राष्ट्रमंडल और पाक.अमेरिका टकराव से लेकर एमएफएन के दर्जे तक कुछ सकारात्मक घटित हो रहा है।

- बालेन्दु शर्मा दाधीच

भारत और पाकिस्तान के संबंध इसी तरह से आगे बढ़ने चाहिए। दोनों देशों के बीच छह दशकों से जिस तरह के कटु और आक्रामक रिश्ते चले आए हैं, उन्हें देखते हुए पिछले कुछ हफ्तों की घटनाओं पर ताज्जुब होता है। अचानक ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के रुख में बदलाव, वह भी सकारात्मक, आ रहा है? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत ने पाकिस्तान के हक में वोट डाला। राष्ट्रमंडल के भारतीय महासचिव कमलेश शर्मा के कायर्काल को चार साल के लिए आगे बढ़ाने के मुद्दे पर पाकिस्तान ने भारत के प्रस्ताव का अनुमोदन किया। कुछ दिन पहले भारतीय थलसेना का एक हेलीकॉप्टर गलती से पाक अधिकृत कश्मीर में चला गया और वहां के सुरक्षा अधिकारियों ने कोई भी नुकसान पहुंचाए बिना उसे लौटने की इजाजत दे दी जबकि अतीत में ऐसी घटनाओं में कई सैनिकों और असैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। फिर 15 साल लंबे अनिश्चय के बाद पाकिस्तान ने आखिरकार भारत को सबसे तरजीही देश (एमएफएन) का दर्जा देने का फैसला किया और अब खबर है कि 26 नवंबर 2008 के मुंबई विस्फोटों की जांच के सिलसिले में बनाया गया पाकिस्तानी आयोग तफ्तीश के लिए भारत आने वाला है। पता नहीं यह सिलसिला कितने कम या ज्यादा दिनों तक चलेगा, मगर इस उपमहाद्वीप में अमन और तरक्की चाहने वाला हर इंसान यही चाहेगा कि सद्भावना और सौहार्द का यह दौर यूं ही चलता रहे।

भौगोलिक सच्चाइयों, साझी विरासत और साझे इतिहास के जरिए दोनों देश एक दूसरे से कुछ यूं जुड़े हुए हैं कि उन्हें अलग करना नामुमकिन है। लेकिन पड़ोसी होते हुए भी हम एक.दूसरे से कितने दूर हैं! बड़ा अज़ीब रिश्ता है यह। पाकिस्तानी नागरिकों से पूछिए कि वे किससे सवरधिक नफरत करते हैं तो उनका जवाब होगा- भारत। यही सवाल भारत में पूछिए तो जवाब मिलेगा- पाकिस्तान। अब हालात को जरा पलटकर देखिए। जब भी माहौल सकारात्मक रहा है, पाकिस्तानियों ने भारतीयों के लिए और हमने पाकिस्तानियों के लिए इतना प्यार दिखाया है कि समझ ही नहीं आता कि इतनी भावनात्मक निकटता के बावजूद हमारे बीच नफरतों की दीवारें भला क्यों आ खड़ी होती हैं? तेरा साथ सह न पाऊं और तेरे बिना रह न पाऊं। अच्छी बात है कि आपसी संबंधों का रोलर-कास्टर एक बार फिर अच्छे दौर से गुजर रहा है। अब भले ही एमएफएन के मुद्दे पर पाकिस्तान में अस्थायी ऊहापोह, अंतरविरोधों और घबराहट का आभास हो रहा हो, यह एक सच्चाई है जो आज नहीं तो कल अमल में आ ही जाएगी।

भारत ने कितने मौकों पर पाकिस्तान की तरफ सौहार्द, सद्भावना और दोस्ती का हाथ बढ़ाया! रक्तहीन क्रांति के जरिए सत्ता हथियाने के बाद जब जनरल परवेज मुशर्रफ को पूरी दुनिया ने दुत्कार दिया था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी सत्ता को मान्यता दी और विश्व राजनीति में उपेक्षित, राष्ट्रमंडल से निष्कासित पाकिस्तान धीरे.धीरे मुख्यधारा में लौटा। क्रिकेट की दुनिया में जब कोई देश पाकिस्तान का दौरा करने को तैयार नहीं था तब भारतीय क्रिकेट टीम ने वहां जाकर यह धारणा दूर करने का प्रयास किया कि पाकिस्तान में आतंकवाद के हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि वहां कोई विदेशी टीम जा ही नहीं सकती। सन 1996 में डब्लूटीओ के प्रावधानों के तहत भारत ने पाकिस्तान को सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा दिया। लेकिन जो घटना लोगों की निगाह में ज्यादा नहीं आई वह थी ताजा अमेरिका.पाक टकराव के दौर में भारत की ओर से जारी किया गया वह आधिकारिक बयान जिसकी उम्मीद पाकिस्तान को कभी नहीं रही होगी। जब पाकिस्तान पर अमेरिकी हमले की संभावनाओं की चर्चा हो रही थी, तब भारत ने अवसरवादिता की बजाए सद्भाव दिखाया और आधिकारिक चेतावनी दी कि दक्षिण एशिया में किसी भी आक्रामक कार्रवाई का इस इलाके में शांति, स्थिरता और विकास पर गभीर असर पड़ेगा। इससे भारत भी प्रभावित होगा। इस बयान ने पाकिस्तान को कितनी राहत दी होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। संभव है, इसके बाद ही भारत के प्रति उसका नजरिया बदला हो।

एमएफएन का दर्जा

अमेरिका ने कहा है कि पाकिस्तान द्वारा भारत को एमएफएन का दर्जा दिया जाना उनके आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए उठाए गए सबसे महत्वपूण्र कदमों में से एक है। उद्योग और व्यापार जगत के दिग्गजों का मानना है कि इससे दोनों ही देशों को लाभ होगा और उनका आपसी व्यापार 2॰6 अरब डालर सालाना से बढ़कर नौ अरब डालर तक पहुंच जाएगा। यह खुलेपन का दौर है, जिसमें हर देश अपनी अर्थव्यवस्था को खोल रहा है। वैश्वीकरण के युग में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता अप्रासंगिक होती जा रही है। पाकिस्तान के इंजीनियरिंग और दवा उद्योग में भारतीय उत्पादों से मिलने वाली चुनौती को लेकर चिंता जरूर है, लेकिन टेक्सटाइल्स, सीमेंट, कृषि उत्पादों, सर्जिकल उपकरणों जैसी दर्जनों चीजें भारत को निर्यात कर वहां के उद्यमी भी लाभान्वित होने वाले हैं। भारत ने संकेत दिया है कि अगर पाकिस्तान एमएफएन के मुद्दे पर ठोस कदम उठाता है तो वह पाकिस्तानी कपड़ा उद्योगों को तरजीही रियायतें दे सकता है। टेक्सटाइल्स के क्षेत्र में में पाकिस्तान एक अहम निर्यातक है। इन सबके अलावा, उसे हर साल करीब दो अरब अमेरिकी डालर की मदद उन भारतीय सामानों के सीधे आयात के कारण होगी जो फिलहाल पाक पाबंदियों के चलते दुबई के रास्ते वहां भेजे जाते हैं। भारतीय नियरतकों से मिलने वाले कर अलग हैं। इन सबसे अहम, यह कदम दोनों देशों के कारोबारी संबंधों से तनाव और संदेह के वातावरण से आजाद कर सौहार्द की ओर ले जाएगा। कारोबारियों के लिए वीजा नियमों का सरलीकरण और उदारीकरण भी होने जा रहा है। अब दोनों देशों के कारोबारी न सिर्फ ज्यादा आसानी से सीमा के इधर-उधर आ जा सकेंगे बल्कि दूसरी तरफ की कंपनियों से रिश्ते भी कायम करेंगे। वे एक दूसरे के बाजार और उद्यमिता से काफी कुछ पाएंगे। कारोबारी क्षेत्र का सौहार्द राजनीति और समाज के स्तर पर भी कुछ न कुछ असर जरूर डालेगा। वैसे ही, जैसे नागरिकों से नागरिकों के रिश्ते डालते हैं।

पाकिस्तान सरकार ने देर से ही सही एक सही, बुद्धिमत्तापूर्ण और साहसिक कदम उठाया है। उसे दुष्प्रचार अभियान चलाने वालों और मामले को भावनात्मक मुद्दों से जोड़ने वालों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। भारत के साथ कारोबारी संबंध मजबूत बनाकर श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल ने काफी लाभ उठाया है। ऐसा करने से पाकिस्तान का भी कोई नुकसान होने वाला नहीं है। जिस विशाल भारतीय बाजार पर दुनिया भर के व्यापारियों की नजर है, उस तक आसान, तरजीही पहुंच उसके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है, बशर्ते वह इन नए अवसरों का फायदा उठा सके। आर्थिक रूप से असमान रूप से विकसित देशों के बीच व्यापार में असंतुलन की गुंजाइश हमेशा रहती है, जैसा भारत और चीन के बीच है। अगर पाकिस्तान को व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका है तो वह जायज टैरिफ के जरिए उसे अनुशासित करने के लिए स्वतंत्र है ही।

क्या थी झिझक

भारत में जहां एमएफएन के मुद्दे को एक कारोबारी मुद्दा माना जाता है, वहीं पाकिस्तान में इसे आपसी राजनैतिक विवादों के साथ जोड़कर देखा जाता है, खासकर कश्मीर के साथ। एक के बाद एक पाकिस्तानी सरकारों ने यही रुख अपनाया कि जब तक कश्मीर समस्या हल नहीं होती, भारत को तरजीही राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया जाएगा, भले ही डब्लूटीओ के तहत यह अपेक्षा की जाती है कि उसका हर सदस्य राष्ट्र एक-दूसरे को एमएफएन का दर्जा देगा। वहां ऐसा माना जाता था कि आपसी संबंध सामान्य हुए तो कश्मीर का सवाल उपेक्षित हो जाएगा जिसे बड़ी कोशिशों के बाद एक भावनात्मक मुद्दे के रूप में आम पाकिस्तानी नागरिकों के मन में जिंदा रखा गया है। पाकिस्तान सरकार के फैसले के बाद आने वाली नकारात्मक प्रतिक्रियाओं में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठा है। इसे पाकिस्तान की कश्मीर नीति में नरमी के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि पाकिस्तान सरकार की इस घोषणा के बाद कि यह फैसला सेना और आईएसआई की सहमति से किया गया है, वहां के लोगों को इस तरह का असुरक्षा बोध नहीं होना चाहिए।

कुछ पाकिस्तानी उद्योग संगठनों ने कहा है कि भारत की ओर से पंद्रह साल पहले मिले एमएफएन के दर्जे का उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है क्योंकि भारत ने बहुत सी पाकिस्तानी चीजों के आयात पर नॉन-टैरिफ बैरियर लगाए हुए हैं। इस सिलसिले में कपड़े और सीमेंट की मिसालें दी जाती हैं। हालांकि यह आरोप पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इसे पाकिस्तानी नजरिए के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। कोई भी देश यह नहीं चाहेगा कि दूसरा देश स्वयं उसे ऐसी सुविधा दिए बिना उसके बाजार का एकतरफा तौर पर फायदा उठाता रहे। अब जबकि पाकिस्तान ने हमें एमएफएन का दर्जा देने का फैसला कर लिया है, भारत की तरफ से खड़ी की गई रुकावटें भी धीरे-धीरे खत्म हो जानी चाहिए। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने पाकिस्तानी कपड़ा निर्यातकों को नई रियायतें देने का संकेत दिया है, जो सीमा के इस पार आसन्न मैत्रीपूण्र बदलावों की ओर संकेत करता है। कुछ हम बढ़ें, कुछ आप बढ़ो॰॰ वैश्वीकरण के दौर में दूरियां ऐसे ही खत्म होती चली जाएंगी।
इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- माध्यमः निःशुल्क हिंदी वर्ड प्रोसेसर
- संशोधकः विकृत यूनिकोड संशोधक
- मतान्तरः राजनैतिक ब्लॉग
- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com