Friday, October 3, 2008

अहिंसा का अर्थ कमजोर होना नहीं है

- बालेन्दु दाधीच

श्वेतों और अश्वेतों को समाज में समान दर्जा दिलवाने के लिए मार्टिन लूथर किंग का अथक और सफल संघर्ष महात्मा गांधी के सिद्धांतों की वैश्विक स्तर पर हुई एक और महान विजय का प्रतीक था। किंग ने कहा था कि ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिखाए हैं लेकिन उन लक्ष्यों तक पहुंचने का मार्ग गांधीजी ने सुझाया है।

पिछले साल संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गांधी के जन्म दिवस दो अक्तूबर को `अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस` घोषित कर उनके सिद्धांतों के प्रति समूचे विश्व की आस्था को अभिव्यक्त किया है। प्रथम अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि हिंसा, आतंक और असमानता से ग्रस्त आज के समाज को गांधीजी के सिद्धांतों की पहले से भी ज्यादा जरूरत है। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना जिन उद्देश्यों को लेकर हुई थी (शांति, सहिष्णुता और मानवीय गरिमा की स्थापना) वे वही हैं जिनके लिए गांधीजी ने जीवन भर संघर्ष किया। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पीछे की धारणा यह है कि युद्धों को समाप्त ही नहीं किया जा सकता बल्कि अनावश्यक भी बनाया जा सकता है। गांधीजी का शांतिपूर्ण प्रतिरोध, सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों की भावना भी तो यही है।

हो सकता है कि कुछ लोगों को अहिंसा का विचार आज के समय में प्रासंगिक न लगे लेकिन अहिंसा का अर्थ कमजोर होना नहीं है। इसका अर्थ है अपने प्रतिद्वंद्वी को नैतिक रूप से अस्त्रहीन कर देना। उसे अपने बल-प्रयोग की नैतिकता पर लज्जा महसूस करने पर विवश कर देना। इस तरह की विजय अधिक स्थायी और सार्थक है क्योंकि वह न सिर्फ दमन को समाप्त करती है बल्कि दमनकारी व्यक्ति को भी बदल देती है। भारत में गांधीजी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन की सफलता के साथ-साथ अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन, पोलैंड में लेक वालेसा के नेतृत्व में हुए लोकतंत्र समर्थक आंदोलन और चेकोस्लोवाकिया में चार्टर 77 के आंदोलन की सफलता अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति को प्रमाणित कर चुकी हैं। गांधीजी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों ने उनके निधन के बाद भी विश्व के कोने-कोने में लोगों को अन्याय से मुक्ति दिलाई है। लोगों का जीवन बदल देने वाले ऐसे महापुरुष के सामने विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार भी छोटे पड़ जाते हैं। यह बात नोबेल पुरस्कार देने वाली नार्वे की नोबेल समिति ने भी कही है जिसे आज तक यह पीड़ा साल रही है कि भगवान बुद्ध और ईसा मसीह के बाद विश्व में शांति के लिए सबसे बड़ा योगदान देने वाले महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया गया। इस बारे में नोबेल समिति की स्थायी मानसिक पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए उसकी वेबसाइट पर एक विशेष पृष्ठ मौजूद है जो उन परिस्थितियों की चर्चा करता है जिनके कारण ऐसा नहीं हो सका। गांधीजी विश्व की ऐसी अकेली हस्ती हैं जिनके बारे में नोबेल समिति को इस तरह की स्थायी आत्मग्लानि है और वह इस बात को छिपाती भी नहीं। वह मानती है कि गांधीजी किसी भी नोबेल पुरस्कार से बहुत बड़े हैं।

तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा ने पिछले दिनों कहा था कि महात्मा गांधी, जो कि उनके भी आदर्श हैं, एक सामान्य भारतीय दिखते हैं लेकिन वास्तव में उनके विचार बहुत आधुनिक हैं। गांधीजी के विचार आज भी विश्व भर के युवाओं को प्रभावित करते हैं यह बात अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कराए गए एक सर्वेक्षण में फिर से सिद्ध हुई है। अमेरिकी छात्रों ने गांधीजी को दुनिया की किसी भी ऐतिहासिक या वर्तमान राजनैतिक हस्ती से ऊपर माना है, जिनसे वे प्रेरणा लेना चाहेंगे। बर्लिन में छात्रों की मांग पर एक विद्यालय का नाम बदलकर गांधीजी के नाम पर रखा गया है। अनेक अमेरिकी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में गांधीवाद पर पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं।

गांधीजी के विचारों की लोकिप्रयता, प्रासंगिकता और उनके प्रति सम्मान की भावना को गाहे-बगाहे अनेक बड़ी हस्तियां जाहिर करती रहती हैं। जैसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन, जिन्होंने कहा कि वे गांधीजी जैसे अपने आदर्श की तुलना में कुछ भी नहीं हैं लेकिन उनकी प्रेरणा हमेशा उनके साथ है। पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स के प्रमुख ब्रुस फ्रेडरिक ने शाकाहार के मामले में गांधीजी को अपना प्रेरणा स्रोत बताया है। एक फिलस्तीनी आत्मघाती हमलावर शिफा अल कुदसी का गांधीजी के विचारों को पढ़कर हृदय परिवर्तन हो गया है और वह मध्यपूर्व में शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने में जुट गई है। विश्व भर में मिलने वाली ऐसी मिसालें अनगिनत हैं जिनके केंद्र में सिर्फ एक महापुरुष हैं- महात्मा गांधी। हमारा सौभाग्य है कि वे भारत में जन्मे। गर्व की बात है कि हमें उनका प्रत्यक्ष नेतृत्व और मार्गदर्शन मिला। किंतु उनके मानवतावादी विचारों की वैिश्वक प्रासंगिकता और स्वीकार्यता हमेशा बनी रहेगी।

1 comment:

संजय बेंगाणी said...

गाँधी बुद्ध व महावीर की भूमि भारत में ही पैदा हो सकते थे.

इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com