बालेन्दु शर्मा दाधीच
सोमालियाई जलदस्युओं का प्रमुख जहाज डुबोने की नौसैनिक कार्रवाई को एक अच्छी शुरूआत माना जाना चाहिए- न सिर्फ जलदस्यु संकट के समाधान की दिशा में, बल्कि भारतीय नौसेना की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय भूमिका के संदर्भ में भी। शाबास नौसेना! और यह भी मत भूलिए कि आपने अपनी इस कार्रवाई से भविष्य के लिए देश की उम्मीदें बढ़ा ली हैं।
कई दशकों का परमाणु वनवास खत्म करने वाला भारत-अमेरिका परमाणु करार, वैश्विक वित्तीय संकट से निपटने के लिए आयोजित शीर्ष रणनीति बैठक (जी-20) में हमारी हिस्सेदारी, भारत के पहले चंद्रयान अभियान की सफलता, आस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेट टीम को कई दशकों बाद किसी टीम से मिली 0-2 की हार, पेईचिंग ओलंपिक खेलों में अभिनव बिन्द्रा का स्वर्ण पदक और अदन की खाड़ी में सोमालियाई जलदस्युओं का जहाज मार गिराने का भारतीय नौसेना का वीरतापूर्ण कारनामा। अलग-अलग क्षेत्रों में हुई इन विलक्षण घटनाओं में एक समानता है। इसी साल घटित हुई ये सभी घटनाएं विश्व मानचित्र पर भारत रूपी शक्ति के उभार का संकेत देती हैं। ये सभी घटनाएं एक सफल, शक्ति-सम्पन्न और विकासमान राष्ट्र के बढ़ते आत्मविश्वास को परिलक्षित करती हैं।
अदन की खाड़ी में कई वर्षों से विश्व जल-परिवहन व्यवस्था जलदस्युओं के आतंक से ग्रस्त है। भारतीय नौसेना ने वहां अपनी मौजूदगी के पहले दस दिनों में ही तीन बड़े साहसिक अभियानों को अंजाम दिया है जो वहां मौजूद अन्य देशों के नौसैनिक बेड़ों के लिए एक मिसाल बनने जा रहे हैं। आज नहीं तो कल, सोमालिया में जलदस्युओं की समस्या को हल करने के लिए समिन्वत अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई होनी तय है। यह बड़ी बात है कि जिन जलदस्युओं के आतंक से अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, जापान और अन्य देश भी ग्रस्त हैं उनसे सीधे मुकाबले की शुरूआत हमने की है। यह एक अहम अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभाने की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्वाभाविक आकांक्षाओं की बानगी है। भारत को सबसे बड़े जनशक्ति-सम्पन्न राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। इस घटना ने दुनिया को हमारी ब्लूवाटर नेवी की जलशक्ति भी दिखा दी है।
विश्व भर के अखबारों में भारत की इस कार्रवाई की चर्चा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भारत की कार्रवाई का प्रबल समर्थन किया है और अमेरिका ने इसकी मिसाल जलदस्युओं की समस्या के विरुद्ध वैिश्वक कार्रवाई की शुरूआत के रूप में दी है। इंटरनेशनल मैरीटाइम ब्यूरो के प्रमुख नोएल चूंग से लेकर पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री रिचर्ड कोहेन और दक्षिण अफ्रीकी नौसेनाध्यक्ष मैगलेफा तक ने नौसेना की तारीफ की है। खाड़ी देशों ने भारतीय नौसेना को अपने बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत देने की पेशकश की है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता शॉन मैक्कॉरमैक ने कहा है कि भारतीय जंगी जहाज `तबार` ने सोमालियाई जलदस्युओं के मुख्य जहाज को डुबोने के साथ-साथ कुछ जलदस्युओं को गिरफ्तार भी किया है, जो इस समस्या के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रत्युत्तर का प्रतीक है। उन्होंने कहा है कि भारत, अमेरिका, रूस, नाटो आदि के जहाज तो वहां तैनात हैं ही, अब संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की तैयारी की जा रही है।
एक अंतरराष्ट्रीय चुप्पी जो भारत ने तोड़ी
ऐसा लगता है कि जो विश्व शक्तियां अब तक सोमालियाई जलदस्युओं से सीधे मुकाबले से िझझक रही थीं उनका संकोच भारत की इस पहल के बाद खुल जाएगा। दो व्यापारिक पोतों को अपहृत होने से रोकने और समुद्री डाकुओं के एक जहाज को नष्ट करके भारतीय नौसेना ने यकायक विश्व भर में जो प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है उसकी मिसाल हाल के इतिहास में नहीं मिलती। ऐसा पिछली बार कब हुआ है जब भारतीय नौसेना का नाम रूस, अमेरिका और नाटो की जलसेनाओं के साथ आया हो? भला ऐसा कब होता है जब भारतीय नौसेना विश्व समुदाय से सीधे अपील करे कि सोमालियाई जलदस्युओं की विकट समस्या के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समिन्वत कार्रवाई की जरूरत है? वह जलदस्युओं से त्रस्त क्षेत्र में न सिर्फ और जंगी जहाज तैनात करने जा रही है बल्कि अब अपनी कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखेगी बल्कि जरूरत पड़ी तो जलदस्युओं का पीछा करते हुए सोमालियाई जल क्षेत्र की सीमा के भीतर भी प्रवेश करेगी। लगता है भारतीय नौसेना धीरे-धीरे उस भूमिका में आ रही है जो बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर के विशाल समुद्रों की संरक्षक के रूप में उसकी होनी ही चाहिए।
जब हम बच्चे थे तो कहानियों में समुद्री दस्युओं की कथाएं पढ़ा करते थे। लेकिन आज के आधुनिक युग में जबकि टेक्नॉलॉजी, अर्थव्यवस्था और रक्षा तंत्र इतने मजबूत हो गए हैं तब भी सोमालिया, यमन और ओमान के जल-क्षेत्र में जलदस्यु मौजूद हों और सफलता से बड़ी से बड़ी ताकतों के जहाजों का अपहरण कर फिरौती वसूल कर रहे हों, यह आश्चर्यजनक लगता है। लेकिन यही असलियत है। जावा समुद्र के सुदूर द्वीपों से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य के नन्हें द्वीपों तक और सोमालिया, यमन से लेकर ओमान तक के जल क्षेत्र (अदन की खाड़ी) में जलदस्युओं का आतंक व्याप्त है। खास बात यह है कि यह कोई छोटे-मोटे जहाजी हमले नहीं हैं बल्कि जलदस्युओं ने बाकायदा छोटी-मोटी नौसेनाओं की तरह काम करना शुरू कर दिया है। उन्हें सोमालियाई नेताओं और कारोबारियों का समर्थन हासिल है और जहाजों का अपहरण करके फिरौती वसूलना एक तरह से उस क्षेत्र के बड़े स्थानीय कारोबार का रूप ले चुका है। इसी साल करीब सौ व्यापारिक मालवाही जहाजों को अदन की खाड़ी में अपहृत किया जा चुका है। हर साल करीब बीस हजार तेलवाहक, मालवाहक और व्यापारी जहाज हर साल अदन की खाड़ी से गुजरते हैं। जलदस्यु इतने ताकतवर, तकनीक-समृद्ध और रणनीतिज्ञ हो गए हैं कि उनके लिए इनमें से कुछेक को चुनना और अपने इलाके में हांक लाना असंभव नहीं रह गया है। इन दुस्साहसिक अभियानों के दौरान उन्होंने विश्व के सबसे बड़े तेलवाहक जहाज से लेकर 33 रूसी टैंकों को लेकर जा रहे पोत तक को नहीं बख्शा। ताज्जुब की बात यह है कि ऐसी कई घटनाएं उस इलाके में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी के बावजूद हुई हैं। अमेरिकी नौसेना का पांचवां बेड़ा और नाटो के जहाज लंबे समय से वहां गश्त कर रहे हैं।
निर्णायक कार्रवाई की जरूरत
अनेक देशों के जंगी जहाजों की मौजूदगी के बावजूद समस्या इतना गंभीर रूप इसलिए ले रही है क्योंकि इन जहाजों के बीच किसी तरह का तालमेल नहीं है। ऐसी कोई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था नहीं है जिसके तहत ये जहाज अपने क्षेत्र से गुजरते किसी भी राष्ट्र के जहाजों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों। न ही उन्हें संबंधित क्षेत्रों के जल क्षेत्रों में घुसकर कार्रवाई करने का अधिकार हासिल है। खुद सोमालिया भी इस समय राजनैतिक अराजकता की स्थिति से गुजर रहा है। वहां कोई प्रभावी राजनैतिक तंत्र ही मौजूद नहीं है तो अपराधों की रोकथाम की फिक्र कौन करे और जलदस्युओं के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के साथ तालमेल कौन करे? जलदस्युओं के ज्यादातर हमले पन्टलैंड नामक इलाके से हो रहे हैं जो सोमालिया का गृहयुद्ध ग्रस्त, अर्ध-स्वतंत्र क्षेत्र है। ऐसी भी खबरें हैं कि अलकायदा जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठन सोमालिया जैसे गरीबी और अराजकता भरे राष्ट्रों में अपनी जड़ें फैला रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि जलदस्युओं के आतंक से ग्रस्त समुद्री क्षेत्र बहुत ज्यादा बड़ा है। इसका आकार करीब दस लाख वर्ग मील बताया जाता है जिसे किसी भी एक देश की नौसेना सुरक्षित नहीं कर सकती। अमेरिकी विदेश विभाग भी इस बात को मानता है। उसका कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है जिसे अमेरिका अकेला हल नहीं कर सकता। हाल ही में जलदस्युओं ने दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली अमेरिकी नौसेना की नाक के नीचे से करीब दस करोड़ डालर के कच्चे तेल से भरे जिस सऊदी जहाज `सुपरटैंकर` को अगवा कर लिया। अमेरिकी नौसेना लगातार सफाई दे रही है कि वह ऐसी घटनाओं को तभी रोक सकती है जब उसके जंगी जहाज जलदस्युओं तक दस मिनट के भीतर पहुंचने की स्थित में हों। शॉन मैक्कॉरमैक के ही अनुसार- भले ही इलाके में अनेक विश्व शक्तियों की नौसैनिक मौजूदगी हो लेकिन वे भी कुछ सीमाओं के भीतर काम करती हैं। इसीलिए इस मामले में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को शामिल किए जाने की कोशिश चल रही है ताकि एक प्रस्ताव कर इन सीमाओं को हल किया जा सके।
भारतीय नौसेना द्वारा सोमालियाई जहाज को गिराने की कार्रवाई जलदस्यु समस्या का समाधान कर देगी ऐसा नहीं है। संकट का अंतिम समाधान तो संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देशन में किसी व्यापक सुरक्षा तंत्र की स्थापना के जरिए ही हो सकेगा। लेकिन यह उसी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक बड़ा प्रहार जरूर है। उसने न सिर्फ समस्या की गंभीरता की ओर विश्व का ध्यान खींचा है बल्कि उससे निपटने का कड़ा तरीका भी स्पष्ट किया है। इस कार्रवाई से उस क्षेत्र से गुजरने वाले जहाजों में कुछ हद तक विश्वास का संचार जरूर हुआ होगा, भले ही वे किसी भी देश के हों। इसे एक अच्छी शुरूआत माना जाना चाहिए, न सिर्फ जलदस्यु संकट के समाधान की दिशा में, बल्कि भारतीय नौसेना की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय भूमिका के संदर्भ में भी। शाबास नौसेना! और यह भी मत भूलिए कि आपने अपनी इस कार्रवाई से भविष्य के लिए देश की उम्मीदें बढ़ा ली हैं।
Friday, November 21, 2008
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1 comment:
मैं बहुत दिनो से परेशान था कि इस युग में जलदस्यु सक्रिय हैं तो कैसे? और भारत के जहाज का अपहरण होने के बाद सेना को भेजा क्यों नहीं. अंत में जब दस्युओं पर हमला हुआ तो प्रसन्नता हुई.
विश्व में भारत की साख तभी बन सकती थी जब वह आर्थिक ताकत भी होता. अब स्थिति सुधर रही है तो...आशाएं भी बढ़ी है.
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