पाकिस्तान सरकार जिस अडिग अंदाज में 26 अक्तूबर के मुंबई हमलों से संबंधित सबूतों को खारिज करती जा रही है वह आश्चर्यजनक है भी और नहीं भी, क्योंकि यही पाकिस्तानी फितरत है जिसे हम कारगिल युद्ध के समय भी देख चुके हैं।
- बालेन्दु शर्मा दाधीच
पाकिस्तान सरकार जिस अडिग अंदाज में 26 अक्तूबर के मुंबई हमलों से संबंधित सबूतों को खारिज करती जा रही है वह आश्चर्यजनक है भी और नहीं भी, क्योंकि यही पाकिस्तानी फितरत है। कारगिल युद्ध के समय भी पाकिस्तान ने कश्मीर की पहाड़ी चोटियों पर भारतीय सेना के साथ युद्ध करने वाले पेशेवर सैनिकों के साथ अपना संबंध होने से साफ इंकार कर दिया था। भारतीय सेना ने पहाड़ों पर मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों के सैनिक पहचान पत्र, बैज और अन्य दस्तावेज पाकिस्तान सरकार को सौंपे थे लेकिन तत्कालीन पाक हुक्मरानों ने उन्हें मानने से इंकार कर दिया और अपने सैनिकों के शव तक वापस नहीं लिए। मुंबई के ताजा घटनाक्रम में वह अपने इतिहास को ही दोहरा रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में पुराने नियम ही चलते हैं और ऐसा लगता है कि अगर पाकिस्तानी हुक्मरान मुंबई में गिरफ्तार आतंकवादी मोहम्मद अजमल अमीर कसाव (कसाब) को अपने देश का नागरिक तभी मानेंगे जब उन्हें उसका राशन कार्ड लाकर सौंपा जाए। हिंदुस्तान-पाकिस्तान में बतौर पहचान पत्र और कुछ चले या न चले, राशन कार्ड हर जगह चल जाता है। अब यह अलग बात है कि कसाब और उसके साथियों को इस बात का अंदाजा नहीं था वरना वे देश छोड़ते समय इस अहम दस्तावेज को जरूर साथ लेकर चलते।
पाकिस्तान के साथ-साथ चीन ने भी कह दिया है कि मुंबई के हमलों के मास्टरमाइंड या सरगना की शिनाख्त होनी बाकी है। अब भले ही भारत, इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य विकसित देशों की खुफिया एजेंसियां और सरकारें कुछ भी रहस्योद्घाटन करती रहें, उनकी बला से। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान को इस बात का अंदाजा नहीं है कि आतंकवादी हमलों के पीछे शामिल लोगों के बारे में किस तरह के सबूत मिल सकते हैं और किस तरह के नहीं। लेकिन पाक हुक्मरानों की निगाह में पाकिस्तान के हित इन सबूतों की अनदेखी करने में ही निहित हैं और वे ऐसा ही करते रहेंगे। यह अलग बात है कि हकीकत में उनके देश का हित आतंकवाद की समस्या को नकारने में नहीं है, बल्कि उसके समाधान में है क्योंकि जनरल जिया उल हक, बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ की तरफ से बरसों तक बड़े जतन से बड़ा किया गया यह राक्षस आज खुद पाकिस्तान के वजूद के लिए खतरा बनता जा रहा है। आतंकवाद से मुक्त, सुरक्षित और शांत पाकिस्तान सिर्फ भारत या बाकी विश्व के हित में ही नहीं है, वह खुद पाकिस्तान के भी हित में है। ताज्जुब होता है कि पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार, वहां के बुद्धिजीवी, मीडिया और नीति निर्धारकों को इस बात का अहसास क्यों नहीं हो रहा कि वे जिस बुराई के हक में खड़े हो रहे हैं वह किसी दिन उन सबको और उनकी भावी पीढ़ियों को लील जाएगी।
मुंबई के हमलों में बड़ी संख्या में निर्दोष भारतीयों और विदेशियों के मारे जाने के बाद पूरी दुनिया में गमो-गुस्से का माहौल है। शुरू में पाकिस्तान के कुछ हल्कों में भी ऐसा ही माहौल था और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के शुरूआती बयानों से आतंकवाद के विरुद्ध साझा कार्रवाई की उम्मीद भी बंधी थी। लेकिन इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस के प्रमुख को भारत भेजने की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद जिस तरह पाकिस्तान सरकार का रुख बदला और बदलता चला गया, वह पाक सत्ताधारियों के बीच एक अजीब किस्म के अनिर्णय, भ्रम और दबाव की ओर इशारा करता है। आईएसआई प्रमुख को भारत भेजने का फैसला कहीं इसलिए तो नहीं बदला गया क्योंकि पाकिस्तानी हुक्मरानों को मुंबई हमलों और आतंकवाद की वृहत्तर समस्या में इस कुख्यात खुफिया एजेंसी की परोक्ष या प्रत्यक्ष भूमिका के सामने आने का डर था?
Thursday, December 25, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
एक रोघ देश् से और क्या उन्नीद की जा सकती है। उस देश का वजूद आया ही झूठ और पाखण्ड के आधार पर। उस सत्य को नकारने के लिए ही तो उसे चिल्लाना पडा - पाक....पाक...। उस नापाक देश का अस्तित्व मिटा कर ही शायद भारत अपनी पुरानी गरिमा को स्थापित कर सकेगा।
तो क्या जरदारी को कसाब का राशनकार्ड लाकर दें?
उसे भी जरदारी फर्जी बता देंगे !
Post a Comment