Friday, October 7, 2011

अन्वेषक, आविष्कारक, उद्यमी, स्वप्नदृष्टाः अद्वितीय स्टीव जॉब्स

स्टीव जॉब्स सिर्फ सपने देखने वाले ही नहीं थे, वे सपनों को सच करके दिखाने वाले ऐसे अद्वितीय इंसान थे जिन्होंने अपनी तकनीकों, उत्पादों और विचारों के जरिए विश्व में क्रांतिकारी बदलावों को जन्म दिया।

- बालेन्दु शर्मा दाधीच

दुनिया की शीर्ष आईटी कंपनी एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने कई साल तक कैंसर से लड़ने के बाद पांच अक्तूबर को इस दुनिया से विदा ले ली। महज 56 साल की उम्र में स्टीव जॉब्स का चला जाना न सिर्फ सूचना प्रौद्योगिकी जगत बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा आघात है। वे सिर्फ सपने देखने वाले ही नहीं थे, वे सपनों को सच करके दिखाने वाले ऐसे अद्वितीय इंसान थे जिन्होंने अपनी तकनीकों, उत्पादों और विचारों के जरिए विश्व में क्रांतिकारी बदलावों को जन्म दिया। स्टीव जॉब्स सामान्य वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और तकनीशियनों से अलग थे। वे एक अन्वेषक, शोधकर्ता और आविष्कारक थे। आईटी की दुनिया में तकनीक का सृजन करने वाले तो बहुत हैं लेकिन उसे सामान्य लोगों के अनुरूप ढालने और तकनीक को खूबसूरत, प्रेजेन्टेबल रूप देने वाले बहुत कम। स्टीव जॉब्स एक बहुमुखी प्रतिभा, एक पूर्णतावादी, करिश्माई तकनीकविद् और अद्वितीय 'रचनाकर्मी' थे, तकनीक के संदर्भ में उन्हें एक पूर्ण पुरुष कहना गलत नहीं होगा।

उनके देखे 56 वसंतों के दौरान अगर यह विश्व क्रांतिकारी ढंग से बदल गया है तो इसमें खुद स्टीव जॉब्स की भूमिका कम नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहे गए ये शब्द कितने सटीक हैं कि 'स्टीव की सफलता के प्रति इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी कि विश्व के एक बड़े हिस्से को उनके निधन की जानकारी उन्हीं के द्वारा आविष्कृत किसी न किसी यंत्र के जरिए मिली।' स्टीव जॉब्स, दुनिया भर में फैले हुए आपके आविष्कारों के हम करोड़ों उपयोक्ता और आपकी उद्यमिता तथा अद्वितीय मेधा के अरबों प्रशंसक आपको कभी भुला नहीं पाएंगे।

स्टीव जॉब्स का जीवन अनगिनत पहलुओं, किंवदंतियों और प्रेरक कथाओं का अद्भुत संकलन रहा है। हर मामले में वे दूसरों से अलग किंतु शीर्ष पर दिखाई दिए। चाहे वह एपल से निकलने के बाद का जीवन संघर्ष हो या फिर लंबी जद्दोजहद के बाद उसी एपल में वापसी और फिर उसे आईटी की महानतम कंपनी बनाने की उनकी सफलता। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स के साथ उनकी लंबी प्रतिद्वंद्विता के भी दर्जनों किस्से रहे हैं। दोनों किसी समय मित्र थे किंतु बाद में अलग-अलग रास्तों पर चले गए। न सिर्फ व्यवसाय की दृष्टि से बल्कि तकनीकी दृष्टि से भी उन्होंने आईटी की दुनिया में दो अलग-अलग धुर स्थापित किए। दोनों बहुत सफल, बहुत सक्षम, विस्तीर्ण किंतु परस्पर विरोधाभास लिए हुए। कभी बिल तो कभी गेट्स, सकारात्मक प्रतिद्वंद्विता की इस प्रेरक दंतकथा के उतार-चढ़ाव तकनीकी विश्व के बाकी दिग्गजों के लिए सीखने के नए अध्याय बनते चले गए। किंतु अंततः स्टीव एक विजेता के रूप में विदा हुए। कोई डेढ़ साल पहले एपल ने माइक्रोसॉफ्ट को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी कंपनी बनने का गौरव प्राप्त किया। और इसके पीछे यदि किसी एक व्यक्ति की प्रेरणा, जिजीविषा, लगन, प्रतिभा और उद्यमिता थी, तो वे थे स्टीव जॉब्स।

स्टीव के योगदान को बिल गेट्स से बेहतर कौन आंक सकता है, जिन्होंने उनके निधन पर कहा कि 'दुनिया में किसी एक व्यक्ति द्वारा इतना जबरदस्त प्रभाव डाले जाने की मिसालें दुर्लभ ही होती हैं, जैसा कि स्टीव जॉब्स ने डाला। उनके योगदान का प्रभाव आने वाली कई पीढ़ियां भी महसूस करेंगी।'

भविष्यदृष्टा स्टीव

विलक्षण थे स्टीव जॉब्स। वे सामान्य वैज्ञानिकों, तकनीक विशषज्ञों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, अन्वेषकों, आविष्कारकों, उद्यमियों में नहीं गिने जा सकते। वे तो यह सब कुछ थे, बल्कि उससे भी कहीं अधिक एक भविष्यदृष्टा। हर कोई उनके काम और जीवन से कितना कुछ सीख सकता है। तकनीक में वे शीर्ष पर पहुंचे, डिजाइन में उनका कोई सानी नहीं था, मार्केटिंग तथा ब्रांडिंग के दिग्गज भी उनकी रणनीतियों का विश्लेषण करने में लगे रहते थे, मैन्यूफैक्चरिंग में उनका कोई जवाब नहीं था, उत्पादों की यूजेबिलिटी पर उन्हें चुनौती देना मुश्किल था। वे आगे चलने वाले व्यक्ति थे, बाकी लोग बस उनका अनुगमन करते थे- येन महाजनो गतः सः पंथा। स्टीव इस सहस्त्राब्दि की प्रतिभाओं में गिने जाएंगे जैसे लियोनार्दो द विंची, टामस एल्वा एडीसन, डार्विन, आइंस्टीन, न्यूटन आदि हैं। खासतौर पर वे लियोनार्दो द विंची के बहुत करीब खड़े दिखते हैं, जिन्होंने विज्ञान और तकनीक ही नहीं, और भी एकाधिक क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा की चिरंजीवी छाप छोड़ी।

स्टीव ने हमेशा बड़े सपने देखे, बड़ी कल्पनाएं कीं। जब कंप्यूटिंग की दुनिया काली स्क्रीनों से जद्दोजहद करती रहती थी, वे मैकिन्टोश कंप्यूटरों के माध्यम से ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस (कंप्यूटर की चित्रात्मक मॉनीटर स्क्रीन) ले आए। जब इस मशीन के साथ हमारा संवाद कीबोर्ड तक सिमटा हुआ था तब उन्होंने माउस को लोकप्रिय बनाकर कंप्यूटिंग को काफी आसान और दोस्ताना बना दिया। कंप्यूटर के सीपीयू टावर का झंझट खत्म कर उसे मॉनीटर के भीतर ही समाहित कर दिया तो सिंगल इलेक्ट्रिक वायर कंप्यूटिंग डिवाइस पेश कर हमें तारों के जंजाल में उलझने से बचाया। वह स्टीव जॉब्स के कॅरियर का पहला दौर था। उसके बाद उन्होंने बुरे दिन भी देखे और एपल से निकाले भी गए। लेकिन जब कुछ साल बाद वे उसी कंपनी में लौटे तो नई ऊर्जा, नए जोश और नए हौंसलौं के साथ लौटे। कहीं कोई शत्रुभाव नहीं, सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा, बड़े लक्ष्य, और कुछ क्रांतिकारी परिकल्पनाएँ जो पहले आई-पॉड (2001) और फिर आई-फोन (2007) तथा आई-पैड (2010) की अपरिमित सफलता के रूप में हमारे सामने आई। जब दुनिया कीबोर्ड और मोबाइल कीपैड से जूझ रही थी, उन्होंने हमें टच-स्क्रीन से परिचित कराया और इस असंभव सी लगने वाली टेक्नॉलॉजी को इतनी सरल, संभव और व्यावहारिक बना दिया कि हैरत हुई कि पहले किसी ने ऐसा क्यों नहीं सोचा।

एपल के उत्पाद स्टेटस सिंबल तो सदा से रहे हैं, अपने दूसरे चरण में वे लोकप्रियता का जो जबरदस्त पैमाना स्टीव जॉब्स के उत्पादों ने छुआ, वह बड़े-बड़े मार्केटिंग दिग्गजों को भी चकित करने वाला था। हर उत्पाद करोड़ों की संख्या में बिका और हर तकनीक-जागरूक, संचार-प्रेमी, मनोरंजनोत्सुक युवा का सपना बन गया। एपल से अनुपस्थिति के वर्षों में भी उन्होंने एक बहुत बड़ी एनीमेशन ग्राफिक्स कंपनी को जन्म दिया, जिसका नाम था- पिक्सर एनीमेशन। यह एक अलग ही क्षेत्र था- एनीमेशन फिल्मों का, जिसमें उनकी सफलता ने डिज्नी जैसे महारथी को भी चिंतित कर दिया था।

कभी हार नहीं मानी

स्टीव जॉब्स थे ही ऐसे। अनूठे, अलग, मनमौजी, किंतु परिणाम देने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले। भारत से उनका गहरा रिश्ता रहा। बिल गेट्स अगर स्कूल की पढ़ाई अधूरी छोड़ आए थे तो स्टीव कॉलेज की। दोनों दिग्गजों की आपसी समानताएं कई बार चौंका देती हैं। बहरहाल, स्टीव ने भारत में घूम-घूमकर मानसिक शांति की तलाश का जो उपक्रम किया, बिल के व्यक्तित्व में आध्यात्म का वह अंश मिसिंग है। इसी आध्यात्मिक गहराई ने स्टीव के व्यक्तित्व और प्रतिभा को वह गहनता दी होगी, जिसके बल पर उन्होंने न सिर्फ तकनीकी विश्व के दिग्गजों के साथ प्रतिद्वंद्विता में कभी हार नहीं मानी, बल्कि कैंसर जैसे अपराजेय प्रतिद्वंद्वी के सामने भी प्रबल आत्मबल का परिचय दिया। कैंसर के कारण पिछले कुछ वर्षों में वे समय-समय पर एपल से दूर रहे किंतु जब भी जरूरत पड़ी किसी जुझारू सैनिक की तरह मोर्चे पर लौट आए। अलबत्ता, पिछली 24 अगस्त को उन्होंने एपल के सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया था और अपने निधन तक कुछ समय के लिए कंपनी के चेयरमैन रहे।

स्टीव जानते थे कि उनके इलाज की अपनी सीमाएं हैं और तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें जाना होगा। किंतु उन्होंने अंतिम समय तक हार नहीं मानी और न ही अपने काम तथा उद्देश्यों से डिगे। पिछली दो मार्च को जब आईपैड-2 को लांच किया जाना था, तब स्टीव अपनी बीमारी के इलाज के लिए छुट्टी पर थे। लेकिन सबको चौंकाते हुए वे आईपैड-2 को लांच करने के लिए अवतरित हुए। इस हद तक थी अपन काम में उनकी प्रतिबद्धता। छह साल पहले एक समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- 'इस बात का अहसास कि जल्दी ही मेरा निधन हो जाएगा, मेरे जीवन का सबसे बड़ा साधन है जो मुझे अपन जीवन में बड़े निर्णय करने के लिए प्रेरित करता है। इस अहसास ने कि तुम जल्दी ही विदा हो जाओगे, मुझे किसी भी चीज को खोने की आशंकाओं के जंजाल से मुक्त कर दिया है। तुम्हारा समय सीमित है, इसलिए इसे किसी और का जीवन जीकर व्यर्थ मत करो। सिर्फ अपनी आत्मा की आवाज पर चलो।'

यही आध्यात्मिक और आत्मिक गहराई स्टीव जॉब्स को वह ऊंचाई देती है, जिसका पर्याय उनका आदर्श जीवन बना। स्टीवन पॉल जॉब्स, अपनी कल्पनाओं, हौंसलों प्रेरणाओं और लक्ष्यों में हम आपका अक्स देख सकते हैं। कम लोग होते हैं जो दुनिया पर वैसी अमिट छाप छोड़कर जाते हैं, जैसी आपने छोड़ी।

1 comment:

नवीन पाण्डेय 'निर्मल' said...

एक बार फिर आपने गहराई पूर्ण शानदार जानकारी दी है बालेन्दु जी। स्टीव पर अब तक हिन्दी माचार पत्रों और वेब पर काफी सामग्री आ चुकी है, लेकिन बावजूद आपके लेख में खासी गहराई है। काफी नई सूचनाएं भी मिली। धन्यवाद

इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- लोकलाइजेशन लैब्सहिंदी में सूचना प्रौद्योगिकीय विकास
- माध्यमः निःशुल्क हिंदी वर्ड प्रोसेसर
- संशोधकः विकृत यूनिकोड संशोधक
- मतान्तरः राजनैतिक ब्लॉग
- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com