Thursday, October 2, 2008

गांधी को सीमाओं में बंद किया ही नहीं जा सकता

- बालेन्दु दाधीच

गांधीजी सच्चे अर्थों में एक विश्व मानव थे। एक ऐसा महान व्यक्ति जो `वसुधैव कुटुम्बकम` की भावना में आत्मा से विश्वास रखता था। ऐसी शिख्सयत जो पूरे विश्व को हिंसा, दमन, पराधीनता, अन्याय और असत्य से मुक्त देखना चाहती थी। न तो गांधी के विचार और न वे स्वयं किसी एक राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर रखकर देखे जा सकते हैं।

अमेरिका में जब लोग सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के प्रति असहमति, प्रतिरोध या निराशा प्रकट करने के लिए उठ खड़े होते हैं तो वे न्यूयॉर्क के यूनियन स्क्वायर जाकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं। यूनियन स्क्वायर विश्व भर में राजनैतिक मतान्तर की अभिव्यक्ति का केंद्र और लोकतांत्रिक भावना के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। वहां पर जिन विश्व इतिहास की जिन तीन महान हस्तियों की मूर्तियां स्थापित हैं, उनमें जॉर्ज वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन के अलावा तीसरे हैं महात्मा गांधी। अमेरिका और विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए, अलग-अलग राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण वाले लोग वहां गांधी प्रतिमा की आश्वस्तकारी छत्रछाया में अपनी प्रतिरोधी आवाज उठाते हैं। ये लोग गांधीजी से प्रेरणा लेते हैं, अहिंसा, शांति और एकता के गांधीवादी सिद्धांतों में गहरी आस्था रखते हुए अपने संघर्ष को नैतिक मजबूती प्रदान करते हैं। क्योंकि गांधीजी के सिद्धांत और विचार सिर्फ हम भारतीयों के लिए ही नहीं हैं।

गांधीजी सच्चे अर्थों में एक विश्व मानव थे। एक ऐसा महान व्यक्ति जो `वसुधैव कुटुम्बकम` की भावना में आत्मा से विश्वास रखता था। ऐसी शिख्सयत जो पूरे विश्व को हिंसा, दमन, पराधीनता, अन्याय और असत्य से मुक्त देखना चाहती थी। न तो गांधी के विचार और न वे स्वयं किसी एक राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर रखकर देखे जा सकते हैं। वे पूरे विश्व के महात्मा हैं। वे समूची मानवता के प्रतिनिधि हैं। गांधीजी के प्रति सम्मान और लगाव विश्व के कोने-कोने में दिखाई देता है। कभी डाक टिकटों के रूप में, कभी प्रमुख मार्गों के नामकरण के रूप में तो कभी उनकी प्रतिमाओं और चित्रों के रूप में। यह सम्मान किसी किस्म के वैश्विक राजनैतिक समीकरणों या कूटनीतिक सद्भावनाओं पर आधारित नहीं है बल्कि वास्तविक एवं स्वत: स्फूर्त है क्योंकि गांधीजी कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे। गांधीजी के निधन के साठ साल बाद भी दुनिया उनसे प्रेरणा ले रही है, उनके नाम और सिद्धांतों के साथ जुड़ने में गर्व का अनुभव करती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा ने कुछ महीने पहले कहा था कि महात्मा गांधी जीवन भर उनके लिए प्रेरणा स्रोत बने रहे हैं। गांधी का संदेश उन्हें निरंतर इस बात की याद दिलाता रहता है कि जब सामान्य लोग असामान्य कार्य करने के लिए एकजुट होते हैं तो विश्व में युगांतरकारी बदलाव संभव हैं। ओबामा के सीनेट कार्यालय में गांधीजी का चित्र लगा है जो उन्हें हमेशा सच के हक में खड़े होने के लिए प्रेरित करता रहता है, आम आदमी के प्रति अपने दायित्वों का स्मरण कराता रहता है। ओबामा अमेरिका में हुए नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग के विचारों के प्रति भी गहरी आस्था रखते हैं और यह कोई संयोग नहीं है कि स्वयं किंग का सारा आंदोलन महात्मा गांधी के विचारों और अहिंसक तौर-तरीकों पर आधारित था। श्वेतों और अश्वेतों को समाज में समान दर्जा दिलवाने के लिए उनका अथक और सफल संघर्ष महात्मा गांधी के सिद्धांतों की वैश्विक स्तर पर हुई एक और महान विजय का प्रतीक है। मार्टिन लूथर किंग ने तो महात्मा गांधी को ईसा मसीह से जोड़ा था। उन्होंने कहा था कि ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिखाए हैं लेकिन उन लक्ष्यों तक पहुंचने का मार्ग गांधीजी ने सुझाया है।

दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में चले लंबे रंगभेद विरोधी आंदोलन की सफलता भी गांधीजी के सिद्धांतों की जीत है जिन्होंने वहां रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई की शुरूआत की थी। मंडेला ने हमेशा गांधीजी को अपना प्रेरणा स्रोत माना है जिन्होंने बीस साल तक दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के दमन के विरुद्ध संघर्ष किया और एक व्यापक आंदोलन की नींव तैयार की। डरबन से प्रीटोरिया जाते समय जिस पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया था, आज उसी शहर के बीचोबीच गांधीजी की प्रतिमा स्थापित है। दो साल पहले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उसी डरबन-प्रीटोरिया रेलमार्ग पर पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन तक रेल यात्रा कर गांधीजी को श्रद्धांजलि दी थी।

5 comments:

Anonymous said...

यह सच है
सीमाओं में बंद
नहीं किया जा
सकता गांधी को।

पर विश्‍व मानव
की सीमा में
बंद करना तो
अच्‍छा लगता है।

- अविनाश वाचस्‍पति

Anonymous said...

अच्छा आलेख । इंग्लैण्ड के कई लोग रस्किन के विचारों के गांधीजी पर प्रभाव के कारण अपनापन महसूस कर सकते हैं । द. अफ़्रीका में आश्रम का नाम ही था 'टॉलस्टॉय फार्म' । पोलैण्ड के मजदूर नेता लेच वालेसा के आदर्श भी गांधी थे । तिब्बत की निर्वासित संसद के अध्यक्ष प्रो. रेन्पोचे 'धम्मपद' के अलावा 'हिन्द स्वराज' को उन दो किताबों में रखते हैं जिनसे वे सर्वाधिक प्रभावित हुए। वैश्वीकरण की व्यवस्था का विकल्प हिन्द-स्वराज में है ।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत अच्छा आलेख है।


आप सभी को गाँधी जी, शास्त्री जी की जयंति व ईद की बहुत बहुत बधाई।

रंजन राजन said...

बढिया विचार। न तो गांधी के विचार और न वे स्वयं किसी एक राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर रखकर देखे जा सकते हैं। वे पूरे विश्व के महात्मा हैं।
....आज हमने बापू का हैप्पी बर्थडे मनाया। बापू ने कर्म को पूजा माना था, इसलिए बापू के हैप्पी बर्थडे पर देशभर में कामकाज बंद रखा गया। मुलाजिम खुश हैं क्योंकि उन्हें दफ्तर नहीं जाना पड़ा, बच्चे खुश हैं क्योंकि स्कूल बंद थे। इस देश को छुट्टियाँ आज सबसे ज्यादा खुशी देती हैं।

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख....शुभ दिवस की बधाई एवं शुभकामनाऐं.

इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com