इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है
भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन
बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य
महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।
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3 comments:
achha prateek. Sarvottam.
बहुत खूब।
Rajiv Nigam'Raj' said ....
"Kabil-e-Tareef" lekin iss tippani ke saath ki- Vidambna ke aagey lagaa yeh prashnawachak chinh kya kabhi hat payega? Yadi han, toh kab aur kaise; Yadi nahih toh kyon?
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