Saturday, July 23, 2011

इनका भ्रष्टाचार बनाम उनका भ्रष्टाचार

बालेन्दु शर्मा दाधीच:

भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केंद्र में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को लगातार निशाना बनाती रही है। लेकिन कर्नाटक में जिस तरह से एक के बाद एक भ्रष्टाचार और भाई.भतीजावाद के मामले सामने आ रहे हैं, उन्होंने मुख्य विपक्षी दल को बड़ी अजीब स्थिति में ला दिया है। भ्रष्टाचार भले ही केंद्र का हो या राज्य का, उसमें कोई गुणवत्तात्मक भेद नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचारी नेता भले ही इस पार्टी से संबंध रखता हो या उस पार्टी से, इस गठबंधन से या उस गठबंधन से, इस राज्य से या उस राज्य से, उस पर भ्रष्टाचार संबंधी वही नैतिक वर्जनाएं और कानून लागू होते हैं जो दूसरों पर होते हैं। ऐसे में कर्नाटक के घटनाक्रम पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा कोई दखल न किया जाना उसके उस नैतिक रुख के अनुकूल नहीं है जो उसने नोट के बदले वोट, 2जी घोटाले, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले, काले धन के विरुद्ध बाबा रामदेव की मुहिम, अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, दिल्ली सरकार के घोटालों और ऐसी ही दर्जनों दूसरी घटनाओं के संदभ्र में लिया है। किसी दल को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आप सिर्फ दूसरों को उपदेश देता है और खुद उन पर अमल करने से बचता है तो वह अपनी राजनैतिक साख को दांव पर लगा रहा है।

केंद्र सरकार ने पिछले कुछ महीनों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कुछ अहम कार्रवाइयां की हैं। ये कार्रवाइयां उसने खुद किसी अंत:प्रेरणा से प्रेरित होकर या नैतिकता के तकाजे की बदौलत नहीं की है। भाजपा सहित ज्यादातर विपक्षी दलों के दबाव, सिविल सोसायटी के आंदोलनों, सुप्रीम कोर्ट के सीधे दखल और जनता के बीच पैदा हुई जागरूकता ने उसे विवश किया। अन्यथा जिस ए राजा के विरुद्ध पुख्ता सबूत डेढ़ दो साल से उपलब्ध थे, उसके विरुद्ध कार्रवाई के लिए इतना लंबा इंतजार नहीं किया जाता। लेकिन फिर भी, केंद्र सरकार को यह श्रेय देना पड़ेगा कि उसने कई मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो को कार्रवाई करने की पूरी छूट दी है। अनेक पूवर् मंत्रियों और सांसदों के जेल पहुंचने के रूप में उसके नतीजे भी दिखाई दे रहे हैं। 'नोट के बदले वोट' जैसे शर्मनाक कांड में भी दिल्ली पुलिस ने समाजवादी पार्टी के पूवर् महासचिव अमर सिंह तक से पूछताछ की है जो भले ही अदालती फटकार के बाद अंजाम दी गई हो, मगर देश की राजनीति में सवर्ोच्च स्तर से हरी झंडी मिले बिना संभव नहीं थी। केंद्र ने लोकपाल बिल भी तैयार कर लिया है जो संसद के मानसून सत्र में पेश हो ही जाएगा। इसके प्रारूप को लेकर भले ही विपक्ष और सिविल सोसायटी के मन में कई तरह की शंकाएं, संदेह और आपित्तयां हों, लेकिन एक दस्तावेज तैयार तो हुआ ही है। बाहरी दबाव में ही सही, इसके प्रावधान पहले के प्रारूपों की तुलना में मजबूत माने जा रहे हैं। लेकिन केंद्र को भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाइयों के लिए उचित रूप से मजबूर करने वाला मुख्य विपक्षी दल अपने नेतृत्व वाली राज्य सरकारों पर लगे लगभग उसी किस्म के आरोपों पर भिन्न रुख कैसे अपना सकता है?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के लिए भ्रष्टाचार के आरोप कोई अपरिचित चीज नहीं हैं। वे गाहे.बगाहे इस किस्म के आरोपों के दायरे में आते रहते हैं। अपने छोटे से कायर्काल में वे जितने राजनैतिक संकटों और आरोपों के शिकार हुए हैं, वह अपने आप में एक मिसाल है। कुछ ही दिन पहले येदियुरप्पा द्वारा अपने चहेतों और रिश्तेदारों को औने.पौने दामों पर जमीन आवंटित किए जाने की बात सामने आई थी। अब राज्य के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने हजारों करोड़ रुपए के खनन घोटाले में उनकी भूमिका से पर्दा उठा दिया है। केंद्र में प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाए जाने की प्रबल मांग करने वाली भारतीय जनता पार्टी राज्य में लोकायुक्त द्वारा किए गए इतने गंभीर आक्षेप को उसी अंदाज में ले रही है जैसे सत्तारूढ़ पार्िटयां लेती आई हैं. उन्हें दूसरों के विरुद्ध लगाए गए आरोप गंभीर और अपने विरुद्ध लगे आरोप हल्के तथा बेबुनियाद दिखाई देते हैं। लोकायुक्त के बयान पर भाजपा ने यह टिप्पणी की है कि संतोष हेगड़े इस तरह बर्ताव कर रहे हैं जैसे वे कोई विपक्षी नेता हों। इस आरोप को अगर आप बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के संदभ्र में किए गए केंद्रीय मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं के बयानों के साथ रखकर देखेंगे तो उनमें कोई खास अंतर नहीं है। हर सत्तारूढ़ दल ऐसी स्थिति में इसी तरह प्रतिक्रिया करता है। चाहे वह अपने को 'दूसरों से अलग' करार देने वाली भारतीय जनता पार्टी ही क्यों न हो।

आरोप, एक के बाद एक

हर संकट के समय मंदिरों में जाकर पूजा.अर्चना करने और हाथियों से आशीवरद लेने के लिए प्रसिद्ध बीएस येदियुरप्पा भले ही अपनी कुर्सी पर जमे रहने के लिए कितने भी अडिग क्यों न हों, उनके पास मौजूद विकल्प घटते जा रहे हैं। लोकायुक्त की लीक हुई रिपोर्ट के अनुसार (जो कुछ ही दिन में सार्वजनिक रूप से सामने आने वाली है), थिम्मप्पनागुड़ी में लौह अयस्क की खदानों से संबंधित सौदों में लाभ पहुंचाए जाने के कारण मुख्यमंत्री के दो बेटों. बीवाई राघवेन्द्र और बीवाई विजयेन्द्र तथा दामाद आरएन सोहन कुमार को परोक्ष रूप से करीब अठारह करोड़ रुपए की रकम दी गई। उनकी तरफ से बेचे गए एक एकड़ के भूखंड को जेएसडब्लू स्टील ने बीस करोड़ रुपए में खरीदा जबकि उनकी बाजार कीमत सिर्फ दो करोड़ रुपए थी। मुख्यमंत्री के परिवार के ट्रस्ट प्रेरणा एजुकेशन सोसायटी को दस करोड़ रुपए का दान भी दिया गया। रिपोर्ट में आरोप है कि खनिज लीज के एवज में आर प्रवीण चंद्र नामक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री के परिवार को करीब छह करोड़ रुपए का एडवांस दिया और बाद में इतनी ही राशि मुख्यमंत्री के परिवार से जुड़ी दो फर्मों. भगत होम्स प्राइवेट लिमिटेड और दवलगिरी प्रोपर्टी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को भी प्रवीण चंद्र ने दी। आरोप सीधे मुख्यमंत्री के बेटों, दामाद और परिवार पर हैं। ठीक उसी तरह जैसे तमिलनाडु में द्रमुक के प्रथम परिवार के विरुद्ध आते रहे हैं।

दो दिन पहले ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने अवैध भूमि सौदों के मामले में पुलिस को मुख्यमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों से पूछताछ की इजाजत दी है। खुद मुख्यमंत्री, उनके दो बेटों और दामाद सोहन कुमार के विरुद्ध निचली अदालत में चल रहे पांच मामलों में हाईकोर्ट ने यह इजाजत दी। सोहन कुमार निचली अदालत द्वारा इन मामलों पर सुनवाई शुरू किए जाने के विरोध में हाईकोर्ट पहुंचे थे। जिस भूमि घोटाले के सिलसिले में यह सब हुआ है, वह 190 करोड़ रुपए का है। आरोपों की कोई कमी नहीं है। रैयत संपर्क केंद्रों की स्थापना के घोटाले में 11 करोड़ रुपए का घपला किए जाने का आरोप है जो कभी बनाए ही नहीं गए। शिमोगा में येदियुरप्पा के परिवार द्वारा बनाया गया होटल भी आरोपों के घेरे में है। पहला आरोप, यह कि यह नियमों का उल्लंघन कर बनाया गया और दूसरा इसमें करीब 39 करोड़ रुपए का खर्च आया जबकि सिर्फ 12 करोड़ का खर्च ही दिखाया गया। उन पर आयकर संबंधी गलत बयानी के भी आरोप हैं। श्री येदियुरप्पा ने इन आरोपों में सीबीआई जांच की मांग ठुकरा दी थी। अब राज्य पुलिस और लोकायुक्त पुलिस इनकी जांच में जुटी है।

भाजपा के अभियान की साख दांव पर

येदियुरप्पा के विरुद्ध उठते आरोपों के तूफान की टाइमिंग भाजपा के अनुकूल नहीं है। भ्रष्टाचार के ज्वलंत मुद्दे पर पार्टी के प्रचंड अभियान पर धर्मप्राण मुख्यमंत्री ने ठंडा पानी फेंक दिया है। केंद्र में महीनों से चल रही उसकी प्रभावशाली मुहिम कमजोर पड़ी है। भाजपा अपने एक मुख्यमंत्री को बचाने के लिए अपनी राजनैतिक साख को लंबे समय तक संकट में नहीं डालती रह सकती। आज नहीं तो कल येदियुरप्पा के भाग्य का फैसला होना तय है, ऐसे, नहीं तो वैसे। कारण, राज्यपाल हंसराज भारद्वाज से उनके 'विशेष रिश्ते' हैं जो लोकायुक्त की रपट का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। खुद लोकायुक्त, जो अगस्त में रिटायर हो जाएंगे, सेवानिवृित्त से पहले खनन घोटाले पर अपनी रपट पेश करके जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो राज्य सरकार के साथ.साथ धारा 12(5) के तहत राज्यपाल को भी दी जा सकती है और जिस पर आगे कार्रवाई करने के लिए श्री भारद्वाज अधिकृत हैं। ऐसे में बीएस येदियुरप्पा के लिए पिछले संकटों की तरह इस बार का संकट कहीं ज्यादा गंभीर है। भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भले ही इसे अनदेखा कर दे, हंसराज भारद्वाज से इस किस्म की उदारता की उम्मीद शायद आप सपने में भी नहीं कर सकते।

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इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- संशोधकः विकृत यूनिकोड संशोधक
- मतान्तरः राजनैतिक ब्लॉग
- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com