Saturday, May 21, 2011

मजबूरी का नाम करुणानिधि

बालेन्दु शर्मा दाधीच:


कनीमोझी गिरफ्तार हो गईं मगर भारत के सुदूर दक्षिण से ऐसी कोई खबर नहीं आई जो राष्ट्रीय राजनीति को हिलाने जा रही हो। द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पारंपरिक चरित्र और स्वभाव को देखते हुए यह कुछ अस्वाभाविक था। अभी कुछ महीने पहले ही तो सिर्फ तीन विधानसभा क्षेत्रों के सवाल पर द्रमुक ने केंद्र सरकार से हटने की धमकी दी थी और उसके मंत्रियों ने बाकायदा दिल्ली में ऐलान भी कर दिया था कि वे इस्तीफे देने जा रहे हैं। उससे पहले भी न सिर्फ संप्रग सरकार में बल्कि पिछली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के जमाने में भी द्रमुक ने हर उस मौके पर दिल्ली को हिलाने की कोशिश जब उसे लगा कि हालात उसके हिसाब से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि कनीमोझी को सीबीआई की प्रत्यक्ष जांच के दायरे में लिए जाने के बाद से ही द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि खासे आक्रोश में हैं। लेकिन बदले हुए हालात में इस रौबीले राजनेता के पास पारंपरिक किस्म की उग्र प्रतिक्रियाएं करने का विकल्प नहीं बचा। कनीमोझी की गिरफ्तारी पर उनकी प्रतिक्रिया भावुक और संयमित रही. 'मुझे वैसा ही महसूस हो रहा है जैसा कि किसी भी पिता को अपनी निर्दोष पुत्री को गिरफ्तार किए जाने पर महसूस होता है।'

कहते हैं, जब बुरा वक्त आता है तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है। करुणानिधि और उनकी पार्टी वक्त के उसी बदलाव से गुजर रहे हैं जब कोई भी कदम सही नहीं पड़ता। छह महीने के भीतर करुणानिधि परिवार कहां से कहां आ गया। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई को स्वतंत्र जांच की इजाजत दिए जाने और जांच प्रक्रिया की सुप्रीम कोर्ट द्वारा निगरानी शुरू होने के बाद से द्रमुक के लोगों पर कानून का सिकंजा कुछ इस तरह कसता चला गया कि दक्षिण की राजनीति के बूढ़े शेर करुणानिधि के पास 'विवशता' के सिवा कुछ नहीं बचा। पहले ए राजा की गिरफ्तारी, फिर कनीमोझी के विरुद्ध चार्जशीट, फिर कांग्रेस के साथ चुनावी मतभेद, अंत में विधानसभा चुनावों में पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी जयललिता की धुआंधार विजय और अब कनीमोझी की गिरफ्तारी॰॰॰ शायद करुणानिधि को पड़ोसी राज्य कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा से सलाह लेनी चाहिए जो राजनैतिक संकटों से बच निकलने में काफी प्रवीण हो चुके हैं। भले ही आप ज्योतिषियों, पूजा-पाठ, तरह.तरह के धार्मिक टोटकों और एक के बाद दूसरे मंदिर के दर्शन करने के उनके रूटिन को कितना भी असंगत और 'मजेदार' मानें, लेकिन कमाल का संयोग है कि अद्वितीय धार्मिक आस्था रखने वाला यह व्यक्ति हर नए राजनैतिक झंझावात से सही-सलामत बाहर निकल ही आता है!

विवशता और संयम

खैर॰ वह तो विनोद की बात हुई। कनीमोझी की गिरफ्तारी की खबर आते ही दिल्ली में किसी आसन्न राजनैतिक जलजले की चर्चाएं शुरू हो गई थीं। आखिरकार कानून के हाथ खुद करुणानिधि के परिवार तक आ पहुंचे थे, उस परिवार के लिए जिसके राजनैतिक और आर्थिक हितों को बचाने के लिए पहले वे बड़े-बड़े राजनैतिक कदम उठा चुके थे। लग रहा था कि शायद एकाध घंटे में द्रमुक द्वारा केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने की खबर आ जाएगी। चेन्नई में पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक भी हुई लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ जिसका कयास जोर.शोर से लगाया जा रहा था। बस इतना कहा गया कि द्रमुक कनीमोझी के मामले में हर जरूरी कानूनी कदम उठाएगी और इस घटना के राजनैतिक परिणामों की विवेचना करेगी। न कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना की गई और सीबीआई पर हमला किया गया। पार्टी को हालात की नजाकत का अहसास है।

आज के हालात में द्रमुक के पास 'इंतजार करो और देखो' के सिवा और कौनसे विकल्प बाकी रह गए हैं? केंद्र सरकार को किसी गंभीर राजनैतिक संकट में फंसाने का विकल्प अब उसके पास नहीं रहा क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन खींचने के बाद भी सरकार गिरने वाली नहीं है। अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता उसकी मदद के लिए आगे आ जाएंगी। अगर किसी को नुकसान होगा तो वह खुद द्रमुक होगी जो केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर दयनीय स्थिति में आ जाएगी। प्रतिशोधपूर्ण राजनीति वाले तमिलनाडु में इस तरह की दयनीय हालत में जाने का जोखिम करुणानिधि नहीं उठाना चाहेंगे। ऊपर से केंद्र सरकार का रहा.सहा संकोच भी खत्म हो जाएगा और भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों की जांच में तेजी आ जाएगी। द्रमुक के पास किसी अन्य राजनैतिक गठबंधन में जाने का भी विकल्प नहीं बचा। भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दरवाजे फिलहाल कुछ साल तक उसके लिए बंद हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबे ऐसे दल को अपने साथ लेने का जोखिम राजग भला क्यों उठाएगा जिसे जनता ने अभी.अभी बुरी तरह ठुकराया है और जिसके नेताओं के कारनामों को लेकर राजग के दल संसद के भीतर और बाहर आवाज बुलंद करते रहे हैं। राजनैतिक रूप से अस्पृश्य हो चुकी द्रमुक के लिए यथास्थिति ही एकमात्र विकल्प है क्योंकि केंद्र सरकार में मौजूदगी कुछ हद तक उसे सुरक्षा कवच प्रदान करती है।

पतन का कारण

अगर आज द्रमुक तमिलनाडु में सत्ता में होती तो स्थितियां अलग होतीं। लेकिन जिस भ्रष्टाचार को कभी करुणानिधि ने चुनावी खर्चों के लिहाज से स्वीकायर् माना था, वही उनकी सरकार के पतन का कारण बन गया। 2जी मामले में सीबीआई की जांच में तेजी आने से पहले के हालात को याद कीजिए। द्रमुक के लिए सभी कुछ तो ठीकठाक चल रहा था। अन्नाद्रमुक लगभग निष्क्रिय और निस्तेज स्थिति में थी और राजनैतिक गलियारों से लेकर मीडिया तक में यही धारणा थी कि द्रमुक सत्ता में लौट आएगी। पिछले चुनावों में मतदाताओं को मुफ्त टेलीविजन बांटने जैसा मास्टर स्ट्रोक खेलने वाले करुणानिधि के राजनैतिक चातुयर् पर संदेह का कोई कारण नहीं था। लेकिन जांच का दायरा जब द्रमुक के अपने लोगों तक फैला तो हालात बदलने शुरू हुए। भ्रष्टाचार आम लोगों के बीच मुद्दा बना और निस्तेज पड़ी अन्नाद्रमुक ने उभरते सत्ता विरोधी माहौल का राजनैतिक लाभ उठाने में देर नहीं लगाई। तमिलनाडु में अगर द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन की हार हुई तो इसका बहुत बड़ा श्रेय सीबीआई द्वारा की गई कार्रवाइयों को जाता है। हालांकि कांग्रेस चाहती तो दूसरे बहुत से मामलों की तरह 'जांच को धीमा' करवा सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, या ऐसा नहीं कर पाई। कारण? एक तो इस मामले की निगरानी खुद सुप्रीम कोर्ट कर रहा था और दूसरे आरोपों की आंच खुद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं तक पहुंचने लगी थी।

वैसे मौजूदा हालात कांग्रेस के लिए उतने प्रतिकूल नहीं हैं जितने कि द्रमुक के लिए हैं। द्रमुक द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने की चिंता से अब वह लगभग मुक्त हो सकती है। राजनैतिक रूप से कमजोर और विकल्पहीन द्रमुक अब संप्रग नेतृत्व के लिए परेशानियां खड़ी करने की स्थिति में नहीं है। आने वाले दिनों में द्रमुक की समस्याएं और बढ़ सकती हैं। कुछ महीनों में सीबीआई जांच का दायरा करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल तक आ पहुंचे तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। आखिरकार केंद्र के सामने भी खुद को पाक.साफ साबित करने की मजबूरी है। कौन जाने तब शायद करुणानिधि कोई बड़ा राजनैतिक तूफान खड़ा कर दें। यह दूसरी बात है कि 'अम्मा' को ऐसे ही मौके का इंतजार है।

1 comment:

Ratan Singh Shekhawat said...

देखते है इस जांच का भी क्या नतीजा निकलता है ? जाँच के नाम पर बचाया जायेगा या सजा होगी !!

इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
- मेरा होमपेज http://www.balendu.com
- प्रभासाक्षी.कॉमः हिंदी समाचार पोर्टल
- वाहमीडिया मीडिया ब्लॉग
- लोकलाइजेशन लैब्सहिंदी में सूचना प्रौद्योगिकीय विकास
- माध्यमः निःशुल्क हिंदी वर्ड प्रोसेसर
- संशोधकः विकृत यूनिकोड संशोधक
- मतान्तरः राजनैतिक ब्लॉग
- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com