भारत और अमेरिका को तो आतंकवाद से जनहानि का ही खतरा है पर इजराइल तो अपना अस्तित्व ही नष्ट हो जाने की चुनौती से जूझ रहा है। अलबत्ता, एक प्रभावी रणनीति और राष्ट्रीय संकल्प की बदौलत वह आज भी दुनिया के नक्शे पर मौजूद है। आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई खत्म नहीं हुई है लेकिन पलड़ा उसी का भारी है।
चारों तरफ से शत्रु ताकतों से घिरे इजराइल ने बाकी दुनिया के सामने इस बात की मिसाल पेश की है कि आतंकवाद का सफलता के साथ मुकाबला कैसे किया जा सकता है। उन्नीस सौ अड़तालीस में अपनी स्थापना के बाद से ही इजराइल आतंकवाद की चुनौती का सामना कर रहा है और चुनौती भी हमास, इस्लामी जेहाद और हिजबुल्ला जैसे आतंकवादी गुटों से जिन्हें विश्व में सबसे कट्टर, सबसे ताकतवर, आर्थिक रूप से सक्षम माना जाता है। ये ऐसे आतंकवादी हैं जो मिसाइलों, मोर्टारों और रॉकेटों से हमला करते हैं। ये ऐसे आतंकवादी संगठन हैं जिनमें एक ढूंढो तो सैंकड़ों आतंकवादी 'स्वयंसेवक' आत्मघाती हमलावर बनने को तैयार रहते हैं। इतना ही नहीं, इजराइल किसी न किसी रूप में लेबनान, ईरान, इराक, सीरिया, मिस्र और अनेक इस्लामी देशों के निशाने पर भी है।
भारत और अमेरिका को तो आतंकवाद से जनहानि का ही खतरा है पर इजराइल तो अपना अस्तित्व ही नष्ट हो जाने की चुनौती से जूझ रहा है। लेकिन एक प्रभावी रणनीति और राष्ट्रीय संकल्प की बदौलत वह आज भी दुनिया के नक्शे पर मौजूद है। आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई खत्म नहीं हुई है लेकिन पलड़ा उसी का भारी है। न सिर्फ अपनी सीमाओं के भीतर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खात्मे के लिए हो रहे प्रयासों में भी उसकी प्रभावी भूमिका है। भारत जैसे देश उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

अमेरिका ने भी तो ऐसा ही किया है। ग्यारह सितंबर की घटनाओं के बाद उसने अलकायदा और उसके सहयोगी तालिबान की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं रखी। वह लड़ाई को अपने घर से हटाकर आतंकवादियों के घर में ले गया और अफगानिस्तान का भू-राजनैतिक परिदृश्य बदलने में सफल रहा। इराक के संदर्भ में उसने भयानक भूलें भी कीं लेकिन आतंकवाद का ढक्कन बंद करके रख दिया। आज पाकिस्तान के कबायली इलाकों और अफगानिस्तान में तालिबान और अलकायदा लड़ाके फिर एकजुट हो रहे हैं लेकिन इसके लिए अमेरिका के पास जवाबी रणनीति तैयार है जिसका सही वक्त पर इस्तेमाल करने से वह चूकेगा नहीं।
आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ एक ही रणनीति हो सकती है- आक्रमण और शून्य-सहिष्णुता की। इसके लिए कठोरतम कानून बनाने, राष्ट्रीय कार्रवाई को सुसंगठित और समिन्वत बनाने के लिए संघीय आतंकवाद निरोधक खुफिया एजेंसी की स्थापना करने, सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाइयों को प्रतिक्रियात्मक (रिएक्टिव) नहीं बल्कि प्रो-एक्टिव और एंटीसिपेटरी बनाने, दहशतगर्दों के ठिकानों पर निर्णायक हमले करने और पूरे देश को आतंकवाद से निपटने की प्रक्रिया से जोड़ने में अब और देरी नहीं की जानी चाहिए। इस कैंसर के प्रति लापरवाही या लचीलापन दिखाकर हम अपना अस्तित्व ही खो बैठेंगे। अन्य देशों की छोड़िए, हमारे अपने देश में पंजाब के उदाहरण ने सिद्ध कर दिया है कि इस त्रासदी से निपटने के लिए लोहे के दस्ताने पहनने की जरूरत है।
15 comments:
जबड़े भिंचो और मुक्का जड़ दो. जय हिन्द.
एक अलापा जाने वाला राग :
इजराइल ने हिंसा से क्या आतंकवाद को खत्म कर दिया? उसका रास्ता हमें नहीं अपनाना चाहिए.
:)
आपको ये क्या हो गया क्या आप संजय बैंगाणी से ताजे ताजे मिल कर आ रहे है ?
या आप भारत के बजाय किसी और देश कि बात कर रहे है ? ये सकुलर देश है जिसमे सेकुलर का मतलब होता है से +कुलर, यानी से= कहो ,कूलर+ ठंडा. मतलब ऐसे मामलो पर कतई ठंडा रुख अपनाओ . हिंदूओ मरते हो मर जाओ . बाकी किसी को कुछ हो तो सच्चर साहब से लेकर ग्रहमंत्री तक भिजवाओ :)
सेक्यूलारिस्टाय नमः स्वाहा
धर्मनिर्पेक्क्षाय नमः कबाड़ा
मित्रो, इसमें हिंदू-मुस्लिम का सवाल ही कहां है। आतंकवाद का शिकार होने वाला हर व्यक्ति सिर्फ इंसान है, किसी धर्म से संबंधित नहीं। आतंकवाद किसी एक धर्म का विरोधी नहीं है। मंदिर निशाना बनते हैं तो मस्जिद भी निशाना बन रही हैं। मालेगांव और हैदराबाद कितने बड़े सबूत हैं। आतंकवाद समूची इंसानियत का दुश्मन है और उसे इसी रूप में देखे जाने की जरूरत है। इजराइल से हम सुरक्षा, शून्य सहिष्णुता और राष्ट्रीय संकल्प के मामले में बहुत कुछ सीख सकते हैं लेकिन इसे किसी धर्म विशेष के लोगों के विरुद्ध नहीं देखा जाना चाहिए। जो खुद आतंकवाद के शिकार हैं उन्हें ही उसके लिए दोषी ठहराना नाइंसाफी होगी।
दधिची जी कशमीर देखिये या गुजरात या फ़िर कही के भी दंगे , शुरू वही से होते है साथ खडी होती है हमारी सरकारे . अब एक सही बात को कब तक छपाते रहेगे जी. जब तक हम ये धर्म के हिसाब से , वोट बैक के हिसाब से कानीन वयव्स्था लागू करते रहेगे . ये होगा ही .
इजराइल जैसी लड़ाई हमें भी लड़नी होगी
देखिये राम का अस्तित्व नहीं है. सीधी सी बात है मैंने तो उन्हें नहीं देखा. ये दुर्गा, विष्णु और गणेश हैं कौन ? इनमें से कोई जमादार है, कोई नौकरानी है. और इन नामों का कोई मतलब नहीं है.
ईसा मसीह शायद हैं, अरे हाँ याद आया, किसी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल हैं शायद. हाँ वे भगवान् हो सकते हैं. आख़िर हम सब को सभ्य बना रहे हैं. A फार Apple पढा रहे हैं.
सिसु मन्दिर वाले पगला गए हैं , मरी भासा में भोजन मन्त्र सिखा रहे हैं. आचार्य नहीं बैल हैं सब के सब. हमारे राज्यपाल ने हमको बताया था कि ये बैल गाड़ी युग की भासा है.
बैल हैं क्या हम !!!!!!!!!!!
नहीं पढूंगा हिन्दी. नहीं बोलूँगा हिन्दी , मैं कोई साम्प्रदायिक थोड़े ही हूँ.
कल से good morning और good evening ही बोलूँगा.
कल से preyar भी करूंगा { Thank you god for this lovly treat. }
हनुमान चालीसा क्यों पढूंगा , कह दिया न साम्प्रदायिक नहीं हूँ.
हिंदू नहीं हूँ. ज्यादा हिंदू हिंदू करोगे तो कल से क्रिस्ची. हो जाऊंगा.
और जैसे ( headless chiken ) { रोनेन सेन } बन गया रोनेन्द्र सेन से मैं भी कुछ कर बदल लूँगा.
ये हिंदू बहुत भुलक्कड़ भी हैं, भूल जाते हैं कि वे साम्प्रदायिक हैं, समान नागरिक संहिता की बात करते हैं.
आज अयोध्या में मन्दिर बनाना चाहते हैं, कल कहेंगे कि हम येरुसलम में मन्दिर बनायेंगे परसों कहेंगे कि ईरान इराक में मन्दिर बनायेंगे, तरसों कहेंगे कि ........ सारे चीन पकिस्तान और बंगला देश को प्रताडित कर रखा है इन हिन्दुओं ने.
हिन्दुओं ने पूरी धरती को तंग कर रखा है, इस पूरी कॉम के ख़िलाफ़ जेहाद कर देना चाहिए और एक एक को पकड़ कर केरल ( धर्म-परिवर्तन ) बना देना चाहिए.
कुछ तो करना ही होगा पर कब ?
.
रामचरित मानस की दुहाई देकर,
रामराज्य कायम करने के हामी भरते यह बेपेंदी के राजनीतिज्ञ
अपनी सुविधानुसार भुला देते हैं,
शठे शाठ्ये समाचरेत
आइये थोड़ा रो-गा लें और अपने अपने काम पर चलें ।
देश से भी बड़ी चीज है दाल-रोटी !
है ना, सर ?
"इसमें हिंदू-मुस्लिम का सवाल ही कहां है"
हमने कब यह सवाल उठाया है सरजी? :)
हम तो कहते है जो भी दोषी हो बीना धर्म देखे सजा दो, और बीना धर्म देखे खोजबीन करो. यही धर्मनिरपेक्षता है. बाकी पुचकार नीति की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
येल्लो बेंगाणीजी भी अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े :)
हम तो सेक्यूलर हैं जी हम कुछ नहीं बोलेंगे....फलस्तीन बचाओ, इराक बचाओ पर कश्मीर को भूल जाओ.
आज इंदिरा गांधी जैसे नेतृत्व की जरूरत महसूस हो रही है देश को....बाकी मनमोहन जैसे लोग तो हमेशा कहते रहेंगे कि हम आतंकवाद के खिलाफ हारने का खतरा नहीं उठा सकते....भैया पहिले से हारे हुओं को खतरा उठाने की जरूरतै नाहीं है....खतरा खुद उन्हें उठा लेगा
संजय भाई, आपने ठीक कहा। आतंकवाद पर हमला हो, ऐसा हो कि यह दोबारा उठने न पाए। मगर इसे किसी भी समुदाय से जोड़े बिना। आतंकवादी मुस्लिम हो, हिंदू हो, ईसाई हो, सिख हो, यहूदी हो या कोई भी और वह बस आतंकवादी है। दोषियों के प्रति किसी किस्म के रहम, लचीलेपन या तुष्टीकरण की जरूरत नहीं है और न ही किसी बेकसूर को सिर्फ इसलिए निशाना बनाने की जरूरत है कि वह किसी धर्म विशेष में पैदा हुआ है।
अपनी सुरक्षा के मामले में हमें न किसी अंतरराष्ट्रीय पुलिसमैन से इजाजत लेने की जरूरत है और न ही अपनी सीमाओं में आतंक मचाकर बाहर भाग जाने वालों को बख्शने की। लेकिन उसके लिए वही इजराइल जैसा दम चाहिए जो आतंकवादियों को साफ संदेश देता है कि हम जलती हुई आग हैं, भीतर घुसोगे तो कंकाल बनकर निकलोगे।
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