Saturday, August 23, 2008

तैयार हो रही है नवाज शरीफ की वापसी की जमीन

बालेन्दु शर्मा दाधीच

हालांकि स्व. बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ की वापसी के बाद पाकिस्तान में नए सिरे से शुरू हुई राजनैतिक प्रक्रिया को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ लेकिन इस बीच देश के राजनैतिक समीकरणों और लोकिप्रयता के ग्राफ में भारी बदलाव आ चुका है। वहां नवाज शरीफ की वापसी की जमीन तैयार हो रही है। बस एक बड़ा राजनैतिक संकट पैदा होने और फिर नए चुनाव करवाए जाने की देर है।

एक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में नवाज शरीफ चाहेंगे कि जब तक पीपुल्स पार्टी की सरकार सत्ता में हैं, उसके जरिए अपना राजनैतिक एजेंडा पूरा कर लिया जाए। इसमें उनके लिए न्यूनतम जोखिम है। कोई कदम सही पड़ने पर श्रेय उन्हें जाता है जबकि परिणाम गलत निकले तो उसके लिए पीपीपी को दोषी माना जाएगा। उनके एजेंडा का पहला लक्ष्य था- अपनी वापसी के हालात पैदा करना और चुनावों में अपने दल की हिस्सेदारी सुनिश्चित करना। पीपीपी के साथ अपने अनौपचारिक गठजोड़ और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बहाली के लिए चले वकीलों के दमदार संघर्ष का सक्रिय समर्थन करके वे तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्ऱफ पर दबाव बनाकर यही लक्ष्य हासिल करने में सफल रहे। पाकिस्तान में सत्ता संभालना उनके तात्कालिक लक्ष्यों में नहीं था क्योंकि परवेज मुशर्ऱफ के रहते यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था। इसीलिए उन्होंने राजनैतिक विनम्रता और गरिमा के साथ स्व. बेनजीर भुट्टो से पहले ही पेशकश कर दी थी कि वे चुनावों के बाद गठित होने वाली भावी साझा सरकार की प्रधानमंत्री बनें। नवाज शरीफ अपने भाई शाहबाज शरीफ को पंजाब का मुख्यमंत्री बनवाने में भी सफल रहे और पीपीपी पर लगातार दबाव बनाते हुए परवेज मुशर्ऱफ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की परिस्थितियां तैयार करने में भी जिनका सामना करना मुशर्ऱफ ने उचित नहीं समझा। मुशर्ऱफ के प्रति अमेरिका के बदले हुए रुख का भी उन्हें लाभ मिला और वे जिस तेजी से पाकिस्तान के राजनैतिक मानचित्र से विलुप्त हुए उसने शायद खुद नवाज शरीफ को भी चौंकाया होगा। लेकिन जब समय बदलता है तो यही होता है।

नवाज शरीफ के एजेंडा में पूर्व मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की बहाली अहम है। इतनी अहम कि उसके लिए वे पीपुल्स पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने और विपक्ष में बैठने को भी तैयार हैं। यह जानते हुए भी कि ऐसी हालत में देश नए सिरे से चुनाव की ओर जा सकता है या फिर सेना को एक बार फिर दखल का मौका मिल सकता है जिसकी उम्मीद पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्ऱफ ने पाली हुई है। इतनी बड़ा जोखिम सिर्फ नैतिक कारणों से नहीं लिया जा सकता, इसके ठोस राजनैतिक कारण हैं।



श्री चौधरी के समर्थन में पिछले साल हुए आंदोलन ने पाकिस्तान में परवेज मुशर्ऱफ के खिलाफ विपक्ष की भूमिका अख्तियार कर ली थी और यदि श्री चौधरी ने थोड़ा और साहस तथा राजनैतिक महत्वाकांक्षा दिखाई होती तो शायद उस माहौल में वे देश के सबसे प्रमुख विपक्षी राजनेता के रूप में भी उभर सकते थे। परवेज मुशर्ऱफ के खिलाफ पाकिस्तानी जनता के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न कारणों से पल रहे आक्रोश को वकीलों के आंदोलन के रूप में अभिव्यक्ति मिल गई थी और इसीलिए उसे सर्वव्यापी समर्थन मिला था। उसी आंदोलन ने राष्ट्रपति के रूप में परवेज मुशर्ऱफ की अस्थिरता की नींव डाली थी। श्री चौधरी के समर्थन में खड़े हुए उन लाखों लोगों और वकीलों को राजनैतिक रूप से अपने साथ लेकर नवाज शरीफ अगले चुनावों में अपनी पार्टी की सफलता के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं, और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की बहाली पर जोर देकर वे यही कर रहे हैं।

हालांकि स्व. बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ की वापसी के बाद पाकिस्तान में नए सिरे से शुरू हुई राजनैतिक प्रक्रिया को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ लेकिन इस बीच देश के राजनैतिक समीकरणों और लोकिप्रयता के ग्राफ में भारी बदलाव आ चुका है। बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की आंधी में सत्ता में आई पीपुल्स पार्टी की लोकिप्रयता में कमी आई है। दूसरी तरफ नवाज शरीफ ने एक के बाद एक हर अहम मुद्दों पर सैद्धांतिक स्टैंड लेकर अपनी लोकिप्रयता बढ़ाई है। पाकिस्तान में मौजूद अमेरिका विरोधी माहौल भी उनके पक्ष में जाता है क्योंकि अमेरिका परस्त पीपीपी के बरक्स उन्हें अमेरिका का विरोधी तसव्वुर किया जाता है।

विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात स्पष्ट हुई है कि वे पीपुल्स पार्टी के अपेक्षाकृत कम अनुभवी नेतृत्व की तुलना में जनता की पसंद बन रहे हैं। न्यायाधीशों के मुद्दों पर वे सफल रहेंगे या नाकाम होंगे, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। नवाज शरीफ जानते हैं कि परिणाम कुछ भी हो, उनका राजनैतिक रूप से और मजबूत होना तय है। दूसरी ओर पीपीपी नेतृत्व इस मुद्दों को लेकर सहज नहीं है क्योंकि इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी के पदासीन होने के बाद उसे आसिफ अली जरदारी के विरुद्ध उन मामलों के दोबारा खुल जाने का डर है जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्ऱफ ने विशेष अध्यादेश लाकर ठंडे बस्ते में डाल दिया था। पीपीपी की यह उलझन न्यायाधीशों के मुद्दों पर उसके बयानों में बार-बार दिखती असंगतियों ने साफ कर दी है।

परवेज मुशर्ऱफ की विदायी पाकिस्तानी राजनीति में एक नए मोड़ की द्योतक तो है लेकिन इस धारावाहिक का अंतिम एपीसोड अभी बाकी है। देश की राजनीति का नए सिरे से ध्रुवीकरण होने जा रहा है। मुस्लिम लीग (कायदे आजम) बिखराव की ओर बढ़ रही है और उससे विलगित होने वाले लोग विचारधारात्मक रूप से अपेक्षाकृत करीब तथा राजनैतिक लिहाज से अधिक मजबूत दिखाई देने वाली मुस्लिम लीग (नवाज) की ओर आ रहे हैं। परवेज मुशर्ऱफ के अशक्त होने के बाद पिछले साथी उनसे हाथ छुड़ाने की प्रक्रिया में हैं। हालात कुछ ऐसे हैं कि सत्ता में होते हुए भी, अमेरिकी समर्थन प्राप्त होते हुए भी, मुशर्ऱफ की विदायी से मिली सराहना के बाद भी पीपीपी नेतृत्व अपनी इच्छानुसार फैसले करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। वरना उसे तो परवेज मुशर्ऱफ से भी कोई खास समस्या नहीं थी जिन्होंने खुले आम बेनजीर भुट्टो की हिमायत की, उन पर लगे सभी मुकदमे हटाए, उनकी देश वापसी का रास्ता साफ किया, आसिफ अली जरदारी को भ्रष्टाचार के आरोपों से अभयदान दिया और पीपीपी की जीत के प्रति आश्वस्त होने के बावजूद चुनाव करवाए। पाकिस्तानी राजनीति में धीरे-धीरे नवाज शरीफ की वापसी की जमीन तैयार हो रही है। बस एक बड़ा राजनैतिक संकट पैदा होने और फिर नए चुनाव करवाए जाने की देर है।

1 comment:

Tarun said...

Lagta to yehi hai ki asthirta ka ye daur abhi aur chalega wahan,

इतिहास के एक अहम कालखंड से गुजर रही है भारतीय राजनीति। ऐसे कालखंड से, जब हम कई सामान्य राजनेताओं को स्टेट्समैन बनते हुए देखेंगे। ऐसे कालखंड में जब कई स्वनामधन्य महाभाग स्वयं को धूल-धूसरित अवस्था में इतिहास के कूड़ेदान में पड़ा पाएंगे। भारत की शक्ल-सूरत, छवि, ताकत, दर्जे और भविष्य को तय करने वाला वर्तमान है यह। माना कि राजनीति पर लिखना काजर की कोठरी में घुसने के समान है, लेकिन चुप्पी तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। बोलोगे नहीं तो बात कैसे बनेगी बंधु, क्योंकि दिल्ली तो वैसे ही ऊंचा सुनती है।

बालेन्दु शर्मा दाधीचः नई दिल्ली से संचालित लोकप्रिय हिंदी वेब पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक। नए मीडिया में खास दिलचस्पी। हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को करीब लाने के प्रयासों में भी थोड़ी सी भूमिका। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन से पुरस्कृत। अक्षरम आईटी अवार्ड और हिंदी अकादमी का 'ज्ञान प्रौद्योगिकी पुरस्कार' प्राप्त। माइक्रोसॉफ्ट एमवीपी एलुमिनी।
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- लोकलाइजेशन लैब्सहिंदी में सूचना प्रौद्योगिकीय विकास
- माध्यमः निःशुल्क हिंदी वर्ड प्रोसेसर
- संशोधकः विकृत यूनिकोड संशोधक
- मतान्तरः राजनैतिक ब्लॉग
- आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन, 2007, न्यूयॉर्क

ईमेलः baalendu@yahoo.com